भोपाल। मध्यप्रदेश में भाजपा की स्थिति काफी कमजोर हो गई है। हालात यह हैं कि जमीनी कार्यकर्ताओं की बात सुनने के लिए प्रदेश कार्यालय में पदाधिकारी तक नहीं मिलते। पूर्व सीएम शिवराज सिंह भाजपा के सबसे अगड़े नेता बने हुए हैं परंतु उन्होंने अपना गुट बना लिया है। प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह संगठन का काम करने में नाकाफी साबित हो रहे हैं। गोपाल भार्गव को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया परंतु अब तक वो दूसरी पंक्ति में ही खड़े हैं। कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा उचित अवसर की प्रतीक्षा में है। कुल मिलाकर संगठन लावारिस हो गया है। भाजपा हाईकमान इससे नाराज है और उसने आदेश दिया है कि जल्द ही भोपाल में कमलनाथ सरकार के खिलाफ बड़ी और प्रभावी रैली की जाए ताकि लोकसभा के लिए माहौल बन सके।
विधानसभाओं में सड़क पर विरोध प्रदर्शन के आदेश
गुजरे रविवार को प्रदेश प्रभारी डॉ. विनय सहस्त्रबुद्धे और लोकसभा प्रभारी स्वतंत्रदेव सिंह की मौजूदगी में 11 फरवरी से दो मार्च तक हुए कार्यक्रमों पर चर्चा की गई। पार्टी ने इन कार्यक्रमों पर संतोष तो जाहिर किया, लेकिन यह भी कहा कि लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश में भाजपा की छवि एक प्रभावी विपक्ष की होना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि आक्रामकता के साथ सरकार के खिलाफ सड़क पर आंदोलन किए जाएं। सारे विधायकों से कहा गया है कि वे अपने क्षेत्र की छोटी-छोटी समस्याओं पर ध्यान केंद्रित कर स्थानीय स्तर पर आंदोलन करें। इसके पीछे पार्टी की सोच यह है कि जनता को ये समझ आए कि भाजपा सरकार ही उनकी बेहतर चिंता करती थी।
भोपाल में बड़ी रैली की तैयारी
भाजपा की तैयारी है कि मार्च में कमलनाथ सरकार के खिलाफ भोपाल या किसी बड़े शहर में एक विशाल रैली की जाए। इसके फोकस में किसान तो रहें पर बाकी सभी वर्ग की भागीदारी भी रहे। पार्टी सूत्रों का कहना है कि आचार संहिता लगने के बाद भी लाखों किसानों के कर्ज माफ नहीं हो पाएंगे। भाजपा की तैयारी है कि इसे मुद्दा बनाया जाए और किसानों को बताया जाए कि पंजाब, कर्नाटक या जहां-जहां कांग्रेस ने कर्ज माफी की घोषणा की वहां किसानों के साथ धोखा किया। पार्टी नेताओं से कहा गया है कि जहां भी सभा लें, वहां किसानों से हाथ उठवाकर पूछें कि कर्ज माफ हुआ या नहीं।