भोपाल। बीते रोज सीएम कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह के लोकसभा चुनाव के संदर्भ में बयान दिया कि उन्हे ऐसी किसी सीट से लड़ना चाहिए जो कांग्रेस के लिए सबसे मुश्किल हो। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी उनकी बात का समथ्रन किया है। सवाल यह है कि इस बयान के पीछे कमलनाथ की मंशा क्या है। क्या उन्हे दिग्विजय सिंह के कौशल पर खुद से ज्यादा भरोसा है या फिर वो दिग्विजय सिंह को उलझा रहे हैं।
दिग्विजय सिंह
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार और इससे कहीं ज्यादा कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है लेकिन सरकार बनने के बाद दिग्विजय सिंह ठीक उसी भूमिका में आ गए जिसमें भाजपा शासन के समय आरएसएस हुआ करता है। चुनाव प्रचार और नतीजों के बाद दिग्विजय सिंह का कद बढ़ा है। वो कांग्रेस में सर्वस्वीकार्य हो गए हैं। लोकसभा चुनाव के लिए राजगढ़ उनकी पारंपरिक सीट है। यदि यहां से चुनाव लड़े तो पूरे प्रदेश में काम कर पाएंगे। जबकि इंदौर और भोपाल में उनकी मांग की जा रही है। यदि इन दोनों में से कोई विकल्प चुना तो अपनी ही सीट में उलझकर रह जाएंगे।
कमलनाथ
पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने अपने बेटे संजय गांधी के दोस्त कमल नाथ को छिंदवाड़ा भेजा था। कांग्रेस में कमल नाथ की जड़ें काफी मजबूत थीं। वो 40 साल से चुनाव लड़ रहे हैं और जीत रहे हैं परंतु एक भी बार उन्होंने छिंदवाड़ा से बाहर झांकने की कोशिश तक नहीं की। बैतूल लोकसभा सीट में कमल नाथ की रुचि शुरू से रही है परंतु कमल नाथ ना तो कभी खुद चुनाव की चुनौती स्वीकारने सुरक्षित सीट छिंदवाड़ा से बाहर निकले और ना ही अपनी पत्नी अलका नाथ या बेटे नकुल नाथ को राजनीति के प्रयोग करने बैतूल भेजा। आज अपने बेटे को भी ना केवल सुरक्षित सीट सौंप रहे हैं परंतु अपने नाम पर अपने बेटे के लिए वोट भी मांग रहे हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया
माधवराव सिंधिया के आकस्मिक निधन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना लोकसभा से चुनाव लड़ने आए। बहुत कम लोग जानते हैं कि पहले चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया इतने डरे हुए थे कि 10 दिन तक तो प्रचार के लिए बाहर ही नहीं निकले। दिग्विजय सिंह उन दिनों मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। दिग्विजय सिंह ने गुना लोकसभा सीट का मोर्चा संभाला। ना केवल खुद जनसंपर्क किया बल्कि सारे मंत्रीमंडल को उपचुनाव में झोंक दिया। इतना ही नहीं अपने व्यक्तिगत संबंधों तक का उपयोग किया। तारीख गवाह है, यदि दिग्विजय सिंह ना होते तो ज्योतिरादित्य सिंधिया का पहला चुनाव इतिहास में दर्ज हो जाता। ज्योतिरादित्य सिंधिया तब से अब तक अपनी सुरक्षित सीट से ही चुनाव लड़ते आ रहे हैं। ग्वालियर सिंधिया राजवंश की पारंपरिक सीट है, वहां से मांग भी उठ रही है परंतु सिंधिया के दिल में दहशत है। वो तय नहीं कर पा रहे हैं।
चुनौती सिर्फ दिग्विजय सिंह को ही क्यों
मध्यप्रदेश में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद को दिग्विजय सिंह के समकक्ष और कई बार उनसे ज्यादा लोकप्रिय व श्रेष्ठ बताते हैं। सवाल यह है कि फिर चुनौती सिर्फ दिग्विजय सिंह के सामने ही क्यों रखी जा रही है। विधायक दीपक सक्सेना ने कमलनाथ को अपनी सीट समर्पित कर दी। कमल नाथ को चाहिए कि वो दीपक सक्सेना को छिंदवाड़ा सुरक्षित सीट से प्रत्याशी बनाएं और अपने बेटे को किसी ऐसी सीट से लड़ाएं जहां से कांग्रेस पिछले 30 सालों में जीत ना पाई है। यही चुनौती ज्योतिरादित्य सिंधिया भी स्वीकार करें। गुना से अपनी पत्नी प्रियदर्शनी राजे को उतारें और खुद ऐसी सीट से चुनाव लड़ें जहां से कांग्रेस पिछले 30 सालों में जीत ना पाई है। कहीं ऐसा तो नहीं कि चुनौती देकर दिग्विजय सिंह को फंसाने की साजिश रची जा रही है।