शीतलाष्टमी की पूजन विधि एवं मुहूर्त | RELIGIOUS

शीतलाष्टमी का पूजन इस वर्ष 28 मार्च को गुरूवार के दिन किया जायेगा। शीतला माता की महिमा का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। इस पर्व को बूढ़ा बसोड़ा या लसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है। शीतला माता के हाथ में झाडू और कलश होता है। माता के हाथ में झाडू होने का अर्थ लोगों को सफाई के प्रति जागरुक करने से होता है। कलश में सभी देवी-देवताओं का वास रहता है। शीतला माता रोगों का नाश करने वाली मानी गई है। इनका वाहन गर्दभ यानि गधा है। शीतला अष्टमी उत्तर भारत में मनायी जाती है। 

शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार चैत्र, वैसाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ मास की अष्टमी को शीतलाष्टमी मनाई जाती है। शीतला अष्टमी पूजा का शुभ मुहुर्त 28 मार्च 2019 की सुबह 7 बजकर 15 मिनट से संध्याकाल 5 बजकर 11 मिनट तक है। ऐसी मान्यता है अगर किसी भी व्यक्ति को जब चेचक निकल आता है तो घर में साफ-सफाई का विशेष ध्यान दिया जाता है। नियम के अनुसार माता भगवती की पूजा होती है। माता शीतला की पूजा होली के बाद आने वाले पहले सोमवार या गुरुवार के दिन ही किया जाता है।

शीतलाष्टमी पूजा विधि

शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता को शीतल यानि बासी खाद्य पदार्थ चढ़ाया जाता है। जिसे बसौड़ा भी कहते हैं। शीतला माता की पूजा में चांदी के पत्र (चौकोर टुकड़ा) पर शीतला माता का चित्र उकेरा हुआ हो, अर्पित करना चाहिए। शीतला माता को भोग के रूप में बासी भोजन भी चढ़ाना चाहिए। शीतला माता को खीर का भोग लगाना चाहिए। इस दिन घर की रसोई में हाथ की पांचों अंगुलियों से घी दीवार पर लगाया जाता है। उसके बाद उस पर रोली और चावल लगाकर शीतला माता की आरती गाई जाती है। इसके अलावा घर के पास के चौराहे पर भी जल अर्पित किया जाता है जो स्वच्छता का प्रतीक होता है।

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