भारत के इतिहास (History of India) में इससे पहले टीवी पर कोई सीरियल नहीं आया। लोग मंच पर 'नाटक' का प्रदर्शन करते थे। इनमें कुछ 2-3 या अधिकतम 7 एपिसोड वाले धारावाहिक भी होते थे परंतु भारतीय टीवी के इतिहास में (History of Indian TV) 7 जुलाई 1984 को पहला टीवी सीरियल (First TV serial) शुरू हुआ। नाम था 'हम लोग'। यह एक फैमिली ड्रामा (Family drama) था जो इतना लोकप्रिय हुआ कि आज भी टीवी के दर्शक फैमिली ड्रामा ही पसंद करते हैं।
इसके बारे में 'आलोक मिश्रा' लिखते हैं कि 300 से 500 का मेहनताना, थियेटर की नौकरी को दाव पर रखकर एक नए काम के लिए एक्सपेरिमेंट करना, एक ही शॉट में सब कुछ फ़ाइनल करना, शूट के लिए खुद के ही कपड़े लेकर बाकि की जरुरत की चीजों का इंतजाम खुद करना। सबकुछ आसान नहीं था लेकिन एक युग की शुरुआत थी इस सीरियल में काम करने वाला हर कलाकार एक सितारा था।
7 जुलाई, 1984 को देश का पहला दूरदर्शन धारावाहिक (Television serial) 'हम लोग' शुरू हुआ था। जिसकी लोकप्रियता ने 1984-85 में टीवी को घर-घर पहुंचाने में बड़ा योगदान दिया और इन्हें देखने के लिए न जाने कितने लोगों ने टीवी खरीदे। देखते ही देखते उस धारावाहिक के बसेसर राम, भागवंती, बड़की, छुटकी, मंझली, लाजो घर-घर चर्चा में आने लगे थे।
मोहल्लेदारी के उस दौर में इस धारावाहिक ने समाज को एक कहानी से जोड़ कर रखा था। आज टेलीविज़न धारावाहिकों की जैसी हालत हो गई है वैसे में इस बात के ऊपर विश्वास करना मुश्किल लगता है कि ‘हमलोग’ ने लोगों की दिनचर्या को निर्धारित करना शुरू कर दिया था। उस धारावाहिक के परिवार के सुख-दुख में सार देश शामिल रहने लगा था। टीवी के पहले ही सोप ओपेरा (Soap operas) ने समाज में गहरी पकड़ स्थापित की।
कई मायने में हम लोग का महत्व है। एक तो यह कि भारतीय टेलीविज़न एक इस पहले धारावाहिक के केंद्र में निम्न मध्यवर्गीय परिवार की कथा कही गई थी जो बाद में ‘अपमार्केट’ के दौर में टेलीविज़न के पर्दे से धीरे-धीरे गायब होती गई।
दूसरे, हमलोग का नाम आते ही लोगों को पहले मनोहर श्याम जोशी का नाम याद आता है, उसके निर्देशक पी कुमार वासुदेव का नाम बाद में ध्यान आता है। कहने का अर्थ यह है कि जोशी जी ने आरंभिक धारावाहिकों पर लेखकीय छाप छोड़ी। आज कौन सा धारावाहिक कौन लिखता है यह जानने की न जरूरत महसूस होती है न ही बताया जाता है।
हम लोग सीरियल में किरदार निभाने वाले कलाकार कहते है की जब हम लोग सीरियल में काम करने के लिए हम पहली बार मिले थे तब हमें आखिर एपिसोड तक की कहानी का पता था। पर आज के दौर मे जिस दिन आप शूट करने जाए तब तक कभी कभी हमें स्क्रिप्ट का पता नहीं होता है।
‘हमलोग’ के साथ जिस विधा की शुरुआत लेखकीय घोषणापत्र के साथ हुई थी, आज उसी माध्यम की उसी विधा में लेखक का चेहरा पहचान विहीन हो गया है। लोग बताते है कि भारत सरकार का आइडिया यह था कि एक ऐसा धारावाहिक दिखाया जाए जिसके माध्यम से ‘छोटा परिवार सुखी परिवार’ के विचार को घर घर पहुंचाया जाए, वह विचार घर-घर स्थापित हुआ या नहीं लेकिन धारावाहिक जरूर घर-घर स्थापित हो गया।
ये शो इसलिए भी लोगो को पसंद आता था क्योंकि शो के अंत में दादामुनि यानि अशोक कुमार एक अलग ही अंदाज में समाज पर कटाक्ष करते थे। आपको ये जान कर हैरानी होगी की अशोक कुमार सीरियल के आखिरी में दिए जाने वाले सन्देश के लिए सीरियल के किरदारों से कई गुना ज्यादा की रकम का मेहनताना लेते थे।
‘हमलोग’ धारावाहिक जैसे ‘वी द पीपल’ की अवधारणा को केंद्र में रखकर लिखा गया था, तैयार किया गया था उस आम आदमी के लिए जो धीरे धीरे टेलीविज़न एक पर्दे से गायब होता चला गया है।
खैर अब कुछ भी हो पर "हम लोग " धारावाहिक ने जो अमिट छाप लोगों के दिलो में छोड़ी है वो कभी भुलाए नहीं भूल सकती और भारतीय टेलिवजन के इतिहास का जब भी जिक्र होगा तब " हम लोग" का नाम स्वर्ण अक्षरो में लिखा जाएगा।