भोपाल। भारत का संविधान अंधविश्वास को अमान्य करता है एवं अंधविश्वासी लोगों को मानसिक रूप से बीमार मानता है। अत: सत्ता के प्रमुख पदों पर बैठे लोगों से अपेक्षा की जाती है कि वो कुछ भी ऐसा ना करें जो अंधविश्वास को बढ़ावा देता हो परंतु नेताओं में चुनाव हार जाने का डर सबकुछ कराता है। इस बार कमलनाथ तो किया ही, यह अंधविश्वास की परंपरा में अपने युवा बेटे नकुल नाथ को भी भागीदार बना दिया।
छिंदवाड़ा में कहा जाता है कि हर चुनाव में मुख्यमंत्री कमलनाथ जुन्नारदेव विधानसभा क्षेत्र में आखिरी जनसभा करते हैं और ऐसा नहीं करने पर उनकी जीत की रफ्तार पर ब्रेक लग जाता है। इस गलती का खामियाजा एक बार कमलनाथ को भुगतना भी पड़ा है, जब 1997 में हुए लोकसभा उपचुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने कमलनाथ को हरा दिया था। उस चुनाव में कमलनाथ चुनाव प्रचार का समापन जुन्नारदेव से करना भूल गये थे, लोग बताते हैं कि जुन्नारदेव में चुनाव प्रचार की आखिरी सभा नहीं करने का खामियाजा उन्हें हार के रुप में चुकाना पड़ा था।
घबराए कमलनाथ ने मिथक को परंपरा बना लिया
अब सीएम कमलनाथ जुन्नारदेव में आखिरी सभा करने को एक परंपरा मानते हैं। इस बार छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से कांग्रेस ने नकुलनाथ को चुनावी अखाड़े में उतारा है। इसलिये कमलनाथ के साथ नकुलनाथ ने भी जुन्नारदेव में सभा की है। नकुनलाथ ने कहा कि उनका बचपन से सपना था कि जब वह चुनाव लड़ें, तब जुन्नारदेव में प्रचार की आखिरी सभा करें। याद दिला दें कि यदि किसी अन्य समकक्ष ने भी अंधविश्वास वाली परंपराओं का पालन किया है तो इसका तात्पर्य यह नहीं होता कि संबंधित को भी इसकी अनुमति प्राप्त है।