विश्व में कार्बन उत्सर्जन बराबर बढता जा रहा है। पृथ्वी का तापमान 2018 में तामपान एक डिग्री और बढ़ गया है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट’ पूरे विश्व के लिए एक चेतावनी है। यह रिपोर्ट कहती है कि सरकारों द्वारा पर्यावरण को लेकर समुचित कदम न उठाए जाने के कारण पेरिस संधि का लक्ष्य निर्धारित समय पर क्या, देर से भी पूरा होना कठिन है। हालात सुधरने के बजाय दिनोंदिन और बिगड़ते ही जा रहे हैं। यह रिपोर्ट न्यूयॉर्क में चल रहे पर्यावरण संबंधी उच्च स्तरीय बैठक के मौके पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतेरेस ने जारी की।
यह रिपोर्ट कहती है की विश्व में कार्बन उत्सर्जन में कमी नहीं आ पा रही है। जिसके फलस्वरूप पिछले चार वर्षों में धरती के तापमान में लगातार बढ़ोतरी हुई है। 2018 में पूर्व-औद्योगिक समय की तुलना में तापमान एक डिग्री सेल्सियस ऊपर चला गया, जबकि पेरिस संधि में इस वृद्धि को सदी बीतने तक २ डिग्री सेल्सियस तक ही सीमित रखने का लक्ष्य है। अगर तापमान इसी तरह बढ़ा तो यह यह लक्ष्य शायद ही हासिल किया जा सके। कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर १९९४ में ३५७ पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) था, जो २०१७ में ४०५.५ पीपीएम हो गया। ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन के कारण समुद्र तल लगातार ऊंचा हो रहा है। २०१७ की तुलना में इसमें २०१८ में ३.७ मिलीमीटर की वृद्धि हुई। इसके साथ निरंतर समुद्री जल में अम्लीयता बढ़ रही है जिससे मूंगों की मौत हो रही है। जल-जीवों की विविधता पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार ग्लेशियरों का आकार छोटा हो रहा है। मौसम का मिजाज बदल गया है। कभी उत्तरी यूरोप में प्रलयंकारी बारिश आ जाती है तो कभी शिकागो उत्तरी ध्रुव से भी ठंडा हो जाता है। रिपोर्ट में पिछले साल केरल में आई असाधारण वर्षा बाढ़ का भी जिक्र मौजूद है। गुतेरेस ने इस बात पर चिंता प्रकट की कि जलवायु परिवर्तन उसे कम करने के हमारे प्रयासों के मुकाबले काफी तेजी से बढ़ रहा है। उन्होंने इस समस्या से निपटने के लिए कदम उठाने का आह्वान करते हुए विश्व भर के राजनीतिक नेतृत्व से ठोस और यथार्थवादी योजनाओं के साथ आगे आने के लिए कहा है।
सही मायनों में जलवायु परिवर्तन पूरी दुनिया की समस्या है और इससे मिलकर ही लड़ा जा सकता है| लेकिन विडंबना यह है कि कई ताकतवर देश इसे लेकर गंभीर नहीं है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप तो ग्लोबल वार्मिग को कोई समस्या ही नहीं मानते, लिहाजा उन्होंने अमेरिका को इस संधि से बाहर कर दिया है। सचाई यह है कि ग्लोबल वार्मिंग पर हर कोई दूसरे से कदम उठाने की अपेक्षा करता है लेकिन खुद कुछ नहीं करना चाहता। अमेरिका इसका उदहारण है |
यूँ तो भारत ने पेरिस संधि में अहम भूमिका निभाई थी | इसके बावजूद ज्यादा कार्बन उत्सर्जित करने वाले देशों में भारत की भी गिनती होती है। हमें वैकल्पिक ऊर्जा के विकास के लिए लगातार प्रयास करना होगा। खासकर सौर ऊर्जा के मामले में भारत का रिकॉर्ड काफी अच्छा है। लेकिन प्रदूषण निवारण अब भी भारत अजेंडे में बहुत नीचे है। प्रदूषण निवारण को विकास योजना का हिस्सा बनाकर भारत की यह तस्वीर बदली जा सकती है। यह काम सबका है, मात्र सरकारों का नहीं।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।