भाजपा के भीतर कुछ नहीं बहुत कुछ गडबड चल रहा है। भीतर ही भीतर जो उबल रहा है, वो अब साफ बाहर दिखने लगा है। अनुशासन के लिये जाने जाने वाली पार्टी में अब वो सब भी होने लगा है जिसकी उम्मीद नही थी। अब फर्जी खतो-किताबत जैसे हथकंडे इस्तेमाल हो रहे हैं, हद तो यह है कि इसकी जद में उन लोगों के नाम जोड़े जा रहे हैं जो पार्टी के मूलाधार है । कल सोशल मीडिया पर डॉ मुरली मनोहर जोशी के नाम से एक चिठ्ठी जारी हुई जिसका बाद में खंडन हुआ। श्री लालकृष्ण आडवाणी के नाम से डॉ जोशी के द्वरा लिखे गये इस पत्र में जो कुछ कहा गया वो सत्य है यह बात अलग है, चिठ्ठी फर्जी है। भाजपा में जो कुछ भी इन दिनों चल रहा है ठीक नहीं है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है चिठ्ठी फर्जी हो सकती है उद्गार नहीं।
इसके पहले ऐसी ही एक चिठ्ठी भाजपा की वरिष्ठ नेत्री, इंदौर से सांसद और लोकसभा की स्पीकर सुमित्रा महाजन भी लिख चुकी है, जिसमे भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की वर्तमान टिकट वितरण नीति को असमंजस भरा कहा गया है । यह चिठ्ठी और इसमें प्रगट उद्गार का कोई खंडन नहीं हुआ। सही मायने अभी भाजपा में असमंजस के सिवाय कुछ साफ़ नही है। पहली सूची में अपने टिकट घोषित करने वाली मोदी- शाह की जोड़ी भी अब ऐसे दबाव में दिख रही है जो अभूतपूर्व है।
पिछले लोकसभा चुनाव में निर्वाचित हुईं तीन महिला मंत्री इस बार चुनाव मैदान से बाहर हो गई हैं। इनमें दो केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज व लोकसभाध्यक्ष सुमित्रा महाजन मध्य प्रदेश सांसद हैं और तीसरी केंद्रीय मंत्री उमा भारती उत्तर प्रदेश से सांसद हैं। उमा का नाता मध्य प्रदेश से है और वे राज्य की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं यह अलग बात है की प्रदेश की राजनीति से चलते वे उत्तर प्रदेश भेजी गई थी ।. खास बात यह कि तीनों एक ही दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से हैं और तीनों यह लोकसभा चुनाव अब तक तो नहीं लड रही है। पार्टी इनके उपयोग का भी फैसला भी नहीं ले पाई है । राज्य से लेकर राष्ट्रीय राजनीति में मध्य प्रदेश के विदिशा इंदौर और भोपाल सीट अपना एक मुकाम रखती है । पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की एक खास पहचान है ।
भोपाल में कांग्रेस की ओर से दिग्विजय सिंह खम ठोंक रहे है । भाजपा अब तक इस सीट के लिए किसी नाम का फैसला नहीं कर पा रही है ?क्यों ? डॉ जोशी की कथित और सुमित्रा महाजन की स्वीकार्य चिठ्ठी में यही सब तो लिखा है । टिकट की आस में कुछ नौजवान कार्यकर्ता घर में बैठे हुए है या बैठा दिए गये है । कुछ टिकट जैसे मध्यप्रदेश में खजुराहो महज इसलिए दिए गये हैं कि वहां एक जाति के वोटों का बाहुल्य है । प्रदेश में अपना एक मुकाम रखने वाले बुन्देलखण्ड के एक नेता ने साफ़ कहा है कि “अब हर बैठक में जातिवादी समीकरण उभार दिए जाते हैं । भले ही इस बैठक में संघ के अधिकारी हों।” हर राज्य की राजधानी से दिल्ली तक यही एक समान कहानी है । इस कहानी में एक समानता पूरे देश में दिखती है वह है असंतोष । जिन्हें टिकट नहीं मिला वे भी जिन्होंने टिकट नहीं मिलने दिया वे भी और वे तो असंतुष्ट है ही जिन्हें सालों से लड़ने लडाने का तजुर्बा है और अब भी लड़ना चाहते है । ऐसे उद्गारों का कोई इलाज हो तो बताइए।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।