आम चुनाव 2019 के पहले चरण के बाद से चुनाव आयोग के सामने सबसे ज्यादा शिकायत और देश के मीडिया में सबसे ज्यादा खबरे ई वी एम् और वी वी पैट को लेकर हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश से निर्वाचन आयोग ने पूरे देश में वीवीपैट के साथ ईवीएम का इस्तेमाल किया है फिर भी ईवीएम को लेकर शिकायतें दूर नहीं हो रही हैं। 2017 से ही ईवीएम केा लेकर हंगामा मचा हुआ है। अब ईवीएम ने मतदाताओं के दिल और दिमाग पर सन्देह पैदा कर दिया है। अब मतदाता सब कुछ करने के बाद भी यह बात जरूर कहते हैं कि “यदि ईवीएम में गड़बड़ी नहीं की गयी तो ...जो उन्होंने किया है वही रिजल्ट आयेगा।“
देश में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मतदाताओं का भरोसा कायम रखने के लिए आयोग को वीवीपैट से निकली पर्चियों का प्रत्येक विधानसभा के पांच बूथों की पर्चियों का भी मिलान कराना होगा। अब सवाल आयोग की साख का है। पहले चरण के चुनाव में जिस प्रकार कई स्थानों पर मॉक पोल के दौरान ही मशीने खराब पायी गयीं जिन्हें आयोग ने बदल दिया।उन्हीं मशीनों में मॉक पोल के समय ही किसी दूसरी पाटी को दिया गया वोट दूसरी पार्टी के सामने जाता हुआ दिखा तो निश्चित रूप से यह सवाल उठना लाजिमी ही है कि आखिर यह वोट सत्तारूढ़ दल को ही जाता हुआ क्यों दिखा? यदि मशीन खराब थी तो कमल के लिए ही क्यों? वह कहीं और भी जा सकता था या वोट रजिस्टर ही नहीं हो सकता था। आखिर यह किसी तीसरी पार्टी या निर्दलीय को जाता क्यों नहीं दिखा? यह सवाल अब अन्य पार्टियाँ उठा रही हैं |
निर्वाचन आयोग के सामने जब भी ईवीएम में गड़बड़ी छेड़छाड़ का सवाल उठता है आयोग अपने दावे के साथ यही कहता है कि ईवीएम में कोई छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है। न ही इसे हैक किया जा सकता है, लेकिन फिर सभी मतदाता इस पर भरोसा पूरी तौर पर नहीं कर पा रहे हैं। आयोग ने सभी पर्चियों के मिलान पर यह कहकर मना कर दिया था कि यदि ऐसा हुआ तो चुनाव परिणाम हफते भर में आयेंगे। अब सवाल यह है कि लोकतंत्र और उसकी प्रक्रियाओं को कैसे निरापद बनाया जाये। यदि फिर से बैलेट पेपर चुनाव होगा तो बूथकैप्चरिंग की सम्भावना बढती है।
भारतीय जनमानस सन्देह इसलिए व्यक्त कर रहा है क्योंकि बैलेट पेपर की लूट और बूथ कैप्चरिंग तो लोगों देखी है | एक सवाल यह भी है कि गुपचुप तरीके के जरिये सबकुछ बदल दिया जाये तो वह क्या कर सकता है? यही अविश्वास उसे पूरी तौर पर ईवीएम को स्वीकारने नहीं देता है। २०१८ में गोरखपुर, फूलपुर के चुनाव परिणाम तथा कैराना की पोलिंग के समय कुछ खास क्षेत्रों में ही मशीनों की खराबी, प्रशासनिक मशीनरी, पुलिस फोर्स का उपयेाग किया गया। सम्भवत: उपचुनाव में यह रिकार्ड रहा होगा कि ७३ पोलिंग बूथों पर पुनर्मतदान कराये गये। वोटों की गणना सही न करने पर एक आईएएस अधिकारी तक हो आयोग को हटाना पड़ा। यह सब चूक नहीं, जानबूझकर किये गये कार्य थे, जो जनता में यहीं सन्देश देते हैं कि आयोग कुछ भी कहें लेकिन सबकुछ ठीक है ऐसा नहीं है।जनता सब कुछ जानती है वह थोड़ी देर चुप भले ही रहे उसकी समझ में सब कुछ आ जाता है कि ऐसा क्यों हो रहा है। नही तो पुलिस की मार खाकर भी कोई अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए दोबारा क्यों आता? यह सब लोकतंत्र की प्रक्रिया और आयोग पर भी उठते सवालिया निशान हैं जिन पर आयोग को बिना किसी पूर्वाग्रह के भलीभांति विचार करना ही चाहिए।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।