खुशहाली की अपनी वार्षिक रिपोर्ट २०१९ जारी हो गई है। इस रिपोर्ट के निष्कर्षों के मुताबिक भारत में रहने वाले लोग दुनिया के सबसे अधिक अप्रसन्न लोगों में शुमार हैं। इतना ही नहीं हाल के कुछ वर्षों में भारत के लोगों की नाखुशी में लगातार इजाफा देखने को मिला है। गरीबी और आय के वितरण के मामले में हमारा रिकॉर्ड कितना खराब साबित हुआ है। हम भारतीय सामाजिक और पारिवारिक समर्थन जैसी बातों पर बहुत अधिक भरोसा करते आए हैं, आज उन मोर्चों पर भी खुशहाली के सूचकांक पर हमारा प्रदर्शन कमजोर साबित हुआ है। इस रिपोर्ट में १५६ देशों पर किया गया अध्ययन शामिल है। इस अध्ययन के नतीजे भी बहुत व्यापक और गहराई लिए हुए हैं। इसमें २००५ के बाद के तमाम आंकड़ों को शामिल किया गया है।
व्यक्तिगत स्तर पर लोगों के नमूनों की बात करें तो उन्हें हर वर्ष, हर देश में दर्ज किया गया और लोगों से कहा गया कि वे खुशहाली का आकलन १ से १० के मानक पर करें। उसके बाद विभिन्न देशों के प्रदर्शन में जो अंतर आया उसे छह वर्गों के माध्यम से सांख्यिकी के मार्फत से समझने का प्रयास किया गया। ये छह वर्ग हैं सामाजिक सहयोग, स्वतंत्रता, भ्रष्टाचार की अनुपस्थिति, उदारता, प्रतिव्यक्ति जीडीपी और जीवन संभाव्यता। शुरुआती चार वर्गो का आकलन कुछ सवालों के जवाब हां अथवा न में तलाशते हुए किया गया। ये सवाल कुछ ऐसे थे मसलन: क्या आपके ऐसे रिश्तेदार हैं जिन्हें जरूरत पडऩे पर आप याद कर सकें, क्या आप इस बात से संतुष्ट हैं कि आपको अपनी मर्जी का काम करने का अधिकार मिला हुआ है, क्या सरकार में व्यापक भ्रष्टाचार है और क्या पिछले महीने आपने कुछ धनराशि दान में दी? प्रति व्यक्ति जीडीपी, क्रय शक्ति समता के डॉलर के संदर्भ में है। जीवन संभाव्यता को एक स्वस्थ जीवन की तस्वीर के प्रतिबिंब के बरअक्स रखकर देखा जा सकता है।
साफ़ बात है कि केवल इन छह वर्गों के आधार पर प्रसन्नता या खुशहाली का पूरा आकलन नहीं किया जा सकता है और इसका संबंध जीवन के अन्य पहलुओं से भी है जो खुशहाली को प्रभावित करते हैं। बहरहाल मैं आकलन प्रक्रिया की बारीकियों में ज्यादा नहीं जाऊंगा। एक सूची में उन चयनित देशों और घटकों को शामिल किया जो प्रसन्नता के क्रम में भारत के लिए मायने रखते थे। ध्यान देने वाली बात यह है कि सन २०१९ की रिपोर्ट में जो जानकारी दी गई है वह सन २०१६-१८ के औसत आंकड़ों पर आधारित है। सबसे पहले भारत का परीक्षण करें तो कुल १५६ देशों की सूची में भारत का स्थान १४० वां है। यानी यह अंतिम कुछ देशों में स्थान रखता है। साफ कहें तो खुशी या प्रसन्नता के पैमाने पर भारत अंतिम १० प्रतिशत देशों में स्थान रखता है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।