चुनाव (ELECTION) में अब चंद दिन बचे हैं | BJP माने या न माने इस चुनाव ने उसका यह मुगालता दूर कर दिया है, की उसका सन्गठन प्रदेश में सबसे मजबूत और अनुशासनबद्ध है | पूर्व मंत्री और सांसद ज्ञान सिंह (MP Gyan Singh) ने मतदान न करके यह साबित कर दिया है, कि भाजपा के प्रदेश नेतृत्व की कोई सुन नहीं रहा है | और तो और भाजपा विधानसभा चुनाव के पहले, चुनाव के बाद या चुनाव के साथ जिन्हें आनन-फानन में टिकट देकर पार्टी में लाई थी वे भी खुले आम बगावत कर रहे हैं | यह सही है कि प्रदेशाध्यक्ष अपने चुनाव क्षेत्र में कड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं, तो इस स्थिति पर निगहबानी से बाकी लोग क्यों गुरेज कर रहे हैं ? पता नहीं किस मुगालते में है, प्रदेश नेतृत्व ?
सबसे पहले प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह(Rakesh Singh) | जबलपुर में जमीन से जुड़े धीरज पटेरिया (Dheeraj Pateriya) मतदान से कुछ दिन पूर्व भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गये| राकेश सिंह उन्हें मना तो नहीं सके न ही उनके विरुद्ध कुछ कर सके | इस बार कांग्रेस प्रत्याशी विवेक तनखा (Vivek Tankha) राकेश सिंह को कड़ी टक्कर दे रहे हैं| विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद अगर प्रदेश में भाजपा का जीत का समीकरण गडबडाया तो हार ठीकरा राकेश सिंह के सर पर ही फूटेगा |
नंदकुमार सिंह चौहान भी प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं, उनको प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद वे अपनी चतुराई से खण्डवा संसदीय क्षेत्र से टिकट पाने में तो सफल जरुर हो गए है | मगर वे अपने ही लिए की मुसीबत खड़ी कर चुके हैं| उनकी जीत सुनिश्चित नहीं कही जा सकती |
तीसरे बड़े नेता नरेंद्र सिंह तोमर हैं |पूर्व सांसद अशोक अर्गल और उनके समर्थक तोमर के लिए मुसीबत खड़ी किये हैं| अशोक अर्गल ने तोमर को हराना अपनी प्रतिष्ठा मान लिया है | नरेन्द्र सिंह तोमर के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठापूर्ण है| केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं | अपने को प्रदेश भाजपा की पहली पंक्ति में गिने जाने वाले इन नेताओं के साथ कुछ और भी मुगालते भाजपा में दूर हो जायेंगे इस बार |
जैसे भोपाल संसदीय सीट में आने वाली भोपाल उत्तर विधानसभा सीट से भाजपा की उम्मीदवार रही फातिमा रसूल सिद्दकी ने भाजपा प्रत्याशी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का प्रचार करने से साफ़ इंकार कर दिया | कारण वे प्रज्ञा सिंह ठाकुर को दिग्विजय सिंह की तरह मुस्लिम विरोधी चेहरा मानती हैं | इन्हें विधानसभा चुनाव में ऐन मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने बेटी मान कर भोपाल उत्तर से टिकट दिलाया था | वो चुनाव तो वे हारी ही अब भी उनकी बातें भाजपा की पक्ष विरोधी हैं, भाजपा चुप है | ऐसे में भाजपा के पूर्व विधायक जितेन्द्र डागा (Jitendra daga) भी दगा देकर कांग्रेस में चले गये हैं, भाजपा के सामने भोपाल संसदीय क्षेत्र भी कम बड़ी चुनौती नहीं है | पता नहीं भाजपा ने ये निर्णय किस मुगालते में लिया है |
भाजपा के मुगालते उसे मुबारक | संघ राजनीति में भाग नहीं लेता यह मुगालता इस चुनाव ने जरुर दूर कर दिया है| संघ की पुरजोर सिफारिश के बाद टिकट प्राप्त कर खजुराहो से मैदान में डटे बी.डी.शर्मा के लिए भी भाजपा के स्थानीय नेता चिंता खड़ी करे हए हैं| शर्मा को संघ के कहने पर टिकट तो मिल गया हैं, मगर न जीत पाने पर उनके लिए भी भाजपा में वर्तमान जैसा स्थान बनाए रखना टेढ़ी खीर है|
भाजपा संगठन के कई पदाधिकारी भाजपा में संघ के हस्तक्षेप से हुए फैसलों से खुश नहीं है| अब सवाल यह है कि बवाल करने वाले कौन है ? अधिकांश वे जिन्हें टिकट नहीं मिला | इसमें में भी दो श्रेणी हैं | एक -जो हमेशा अपने लिए या अपने परिवारजनों के लिए टिकट मांगते है और हर तरह का दबाव बनाते हैं | इनमे से कुछ के मुगालते दूर भी हुए हैं और कुछ ने प्रदेश नेतृत्व के मुगालते दूर कर दिए हैं | दो- वे जो वर्षो से पार्टी की सेवा में जुटे है और नेतृत्व ने यह कहकर मुगालता दूर कर दिया है , अभी नहीं अगली बार |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।