इंदौर। भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय, भाजपा की ही महिला नेता सुमित्रा महाजन को नुक्सान पहुंचाने के लिए वर्षों तक प्रयास करते रहे। इस बार लोकसभा चुनाव में फार्मूला 75 के तहत टिकट कटा तो कैलाश विजयवर्गीय इंदौर पर एकक्षत्र राज स्थापित करने की योजना पर काम करने लगे। उन्होंने लोकसभा टिकट के लिए लामबंदी भी की परंतु सुमित्रा महाजन यानी ताई का खौफ काम करता नजर आया। अमित शाह ने कैलाश विजयवर्गीय को रेस से बाहर निकल जाने के लिए कह दिया। इसी के साथ कैलाश विजयवर्गीय ने राष्ट्र के नाम पर टिकट की दावेदारी से खुद को बाहर कर लिया।
लंबे इंतजार के बाद मंगलवार शाम काे कांग्रेस ने पंकज संघवी को इंदाैर से अपना प्रत्याशी घाेषित किया है। इसके बाद अब भाजपा प्रत्याशी का सभी काे इंतजार है। यहां से कैलाश विजयवर्गीय को मजबूत दावेदार माना जा रहा था। कैलाश विजयवर्गीय ने 2 दिन पहले कहा था कि यदि पार्टी आदेश देगी तो मैं चुनाव लड़ने के लिए तैयार हूं परंतु आज ट्वीट किया है कि: "इंदौर की जनता, कार्यकर्ता व देशभर के शुभ चिंतकों की इच्छा है कि मैं लोकसभा चुनाव लड़ूं, पर हम सभी की प्राथमिकता समर्थ, समृद्ध भारत के लिए नरेंद्र मोदी को एक बार फिर पीएम बनाना है। पश्चिम बंगाल की जनता मोदीजी के साथ खड़ी है, मेरा बंगाल में रहना कर्तव्य है... अतः मैंने चुनाव न लड़ने का निर्णय लिया है।" बता दें कि भाजपा की यही परंपरा है। जब किसी व्यक्ति का टिकट फाइनल नहीं होता तो उसे कहा जाता है कि वो खुद अपना नाम वापस ले ले और अपने सम्मान की रक्षा करे।
भाई पर भारी पड़ीं ताई
इंदौर सांसद और लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन इंदौर सीट से लगातार 8 बार चुनकर संसद तक पहुंची हैं, लेकिन इस बार वे पार्टी के फॉमूले 75 साल के फेर में फंस गई। पार्टी ने उन्हे टिकट नहीं दिया तो उन्होंने भी तय किया कि कैलाश विजयवर्गीय का टिकट नहीं होने देंगी। उन्होंने अपनी तरफ से कुछ नाम दिए। पार्टी की समस्या यह थी कि फार्मूला 75 में सुमित्रा महाजन का टिकट तो काट दिया लेकिन यदि उन्होंने चुनाव में पार्टी का प्रचार नहीं किया तो सीट हाथ से चली जाएगी। इसलिए कैलाश विजयवर्गीय को रेस से बाहर होने के लिए कहा गया।