जबलपुर। मध्यप्रदेश की संस्कारधानी ने कई चुनाव देखें हैं लेकिन पहली बार है कि लोकसभा चुनाव में जबलपुर के अंदर जबलपुर ही मुद्दा है। देश भर में आतंकवाद, सर्जिकल स्ट्राइक, राफेल डील या कुछ और दूसरे मुद्दे हो सकते हैं। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में भी चुनावी मुद्दे कुछ और हैं परंतु सुखद है कि जबलपुर में ऐसा कोई भी चुनाव मुद्दा हावी नहीं हो रहा है। यहां जबलपुर की बात हो रही है। जबलपुर का विकास ही मुद्दा है।
पत्रकार श्री राजीव उपाध्याय की एक रिपोर्ट के अनुसार महाकोशल क्षेत्र में जबलपुर संसदीय सीट वीआईपी सीट बन गई है। दोनों ही प्रत्याशी जबलपुर के विकास की बात कर रहे हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि भाजपा प्रत्याशी अपने 15 साल के कार्यकाल में जबलपुर में किए गए विकास की बात कर रहे हैं वहीं कांग्रेस प्रत्याशी इसे कमतर आंकते हुए विकास का नया एजेंडा मतदाताओं के सामने पेश कर रहे हैं।
जबलपुर संसदीय क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी राकेश सिंह भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष भी हैं इससे उन पर खुद की सीट के अलावा अन्य सीटों को जिताने की भी बड़ी जिम्मेदारी है। जबलपुर में 15 साल की एंटी इंकम्बेंसी सामने है। इससे सीट जीतने उन्हें ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही है। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा दूसरी बार चुनाव मैदान में हैं इसलिए उनके सामने भी यह चुनाव प्रतिष्ठा का बन गया है। इससे अब प्रदेश का पूरा ध्यान महाकोशल में वीआईपी सीट बनीं भोपाल और जबलपुर पर है।
विकास के नाम पर वोट
जबलपुर जिले में 87 प्रतिशत साक्षरता है। यहां के निवासी भी अब विकास ही चाहते हैं। 1996 के बाद लगातार जबलपुर संसदीय क्षेत्र में भाजपा के सांसद रहे हैं। इससे अब यह चुनाव विकास की गति का चुनाव हो गया है। भाजपा प्रत्याशी किए गए विकास की बात कर रहे हैं तो कांग्रेस प्रत्याशी विकास की गति तेज करने की बात कर रहे हैं। आम जनता फिलहाल मौन रहकर तौल रही है। इस चुनाव में खास बात यह भी है कि चार माह पहले प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने से उसके काम को भी कसौटी पर कसा जा रहा है। हालांकि लोकसभा चुनाव के मुद्दे इससे अलग हटकर हैं लेकिन दोनों ही पार्टी अपने-अपने नजरिए से गवर्नेंस को मुद्दा बनाकर जनता के बीच पेश कर रही है।
जीत का गणित साधने में जुटे
कांग्रेस और भाजपा पार्टी जबलपुर संसदीय क्षेत्र में जीत का गणित साधने में जुटी हुई हैं। यहां कुल मतदाता 18 लाख 18 हजार 104 हैं। जिनमें से पुरुष मतदाता 9 लाख 40 हजार 149 और महिला मतदाता 8 लाख 77 हजार 874 हैं। वहीं 18 से 19 साल के युवा मतदाताओं की संख्या 41 हजार 438 और 20 से 29 साल के युवा मतदाताओं की संख्या 4 लाख 30 हजार 872 है। कांग्रेस और भाजपा की नजर युवा और महिला मतदाताओं पर है। इन मतदाताओं के वोट को साधने में दोनों ही पार्टियां लगी हुई हैं। कांग्रेस अपने ने कॉलेज और इंस्टीट्यूशन के छात्रों को युवाओं के लिए अपना एजेंडा बता रही है। रविवार को कांग्रेस ने युवाओं और महिलाओं के लिए दृष्टिपत्र भी जारी किया। जिसमें उनके लिए बनाई गई योजनाओं की जानकारी दी है। भाजपा के कार्यकर्ता भी इन मतदाताओं को अपने पक्ष में करने जुटे हुए हैं।
वोट बैंक पर नजर
जबलपुर संसदीय क्षेत्र में आठ विधानसभा क्षेत्र हैं। शहरीय क्षेत्र में उत्तर, पूर्व, पश्चिम, कैंट व ग्रामीण क्षेत्र में पाटन, सिहोरा, बरगी,पनागर शामिल है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 5 लाख 67 हजार 506 और कांग्रेस को 5 लाख 35 हजार 673 वोट मिले थे। इस तरह विधानसभा चुनाव में भाजपा को कांग्रेस से 31833 वोट अधिक मिले थे। शहरीय क्षेत्र के अलावा दोनों ही पार्टियों की नजर मुख्यरूप से ग्रामीण क्षेत्रों पर अधिक है। कांग्रेस ने इसके पहले 15 अप्रैल को मुख्यमंत्री कमलनाथ की सभा सिहोरा व पाटन में रखी थी। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को ग्रामीण क्षेत्र से केवल एक सीट बरगी क्षेत्र से जीत हासिल हुई थी शेष तीन सीट शहरीय क्षेत्र से मिली थीं। परिसीमन के बाद कांग्रेस सिहोरा विधानसभा क्षेत्र से लगातार हारती आ रही है। यह आदिवासी जनजाति बाहुल्य क्षेत्र है। इससे कांग्रेस ने इस क्षेत्र में राहुल गांधी की सभा रखी है ताकि भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाई जा सके।
वहीं भाजपा भी अपना गढ़ बचाने के लिए ग्रामीण क्षेत्र के वोट बैंक को बचाना चाह रही है। रविवार को पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लगातार ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र कुंडम, पाटन, पनागर, शहपुरा क्षेत्र में सभाएं की। कुंडम सिहोरा विधानसभा क्षेत्र में आता है यहां के कुंडम क्षेत्र में तकरीबन 60 हजार से अधिक गोंड़ आदिवासी व सिहोरा में तकरीबन 16 हजार कोल आदिवासी हैं। इससे दोनों ही पार्टियों की नजर इस आदिवासी बेल्ट पर है। यह भाजपा का गढ़ है, कांग्रेस का लक्ष्य इस गढ़ को भेदना है। राहुल गांधी की सभा के अलावा कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया की सभाएं प्रस्तावित हैं।