भोपाल। भानपुरा पीठाधीश्वर स्वामी दिव्यानंदजी तीर्थ वर्ष 1990 से उज्जैन से जुड़े हैं। यद्यपि भानपुरा पीठ उज्जैन संभाग के ही अंतर्गत है। उनके पहले स्वामी सत्यमित्रानंदजी गिरि इस पीठ पर विराजमान थे, परंतु बाद में उन्होंने पीठ को त्यागकर स्वतंत्र रूप से भारत माता मंदिर हरिद्वार में स्थापना की और वे भारतीय संस्कृति एवं दर्शन का देश में विदेशों में प्रचार-प्रसार करने लगे। इनके बाद स्वामी दिव्यानंदजी तीर्थ ने इनकी परंपरा को आगे बढ़ाया और आज भी भारतीय संस्कृति एवं दर्शन का देश एवं विदेशों में प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।
उन्होंने अपना पहला चातुर्मास उज्जैन में ही किया था। वर्ष 1992 के सिंहस्थ व 2004 के सिंहस्थ में उनकी महत्वपूणी भूमिका रही। तब से उनके भक्तों की संख्या मालवा में ही नहीं पूरे मध्यप्रदेश में बढ़ी है। यूं तो उत्तरप्रदेश में गाजियाबाद, छपकोली, मेरठ तथा पंजाब में अंबाला, अमृतसर, लुधियाना और इंग्लैंड व अमेरिका में भी भक्तजन हैं। लंदन, बर्मिंघम व लीस्टर में उनके भक्तों की संख्या देखते ही बनती थी।
स्वामीजी भारतीय संस्कृति, सनातन हिन्दू धर्म के उद्घोषक, मीमांसक होने के साथ व्यवहार में बहुत ही सहज, सरल, शांतचित्त तथा हंसमुख स्वभाव के है।
एक बार स्वामीजी से पूछा गया कि आपको संन्यासी किसने बनाया? वे तुरंत बोले - शनि जो कुंभ लग्न में है, अन्यथा नागालैंड के आर्मी स्कूल का धारावाहिक अंगरेजी बोलने वाला छात्र संन्यास की ओर अचानक यकायक कैसे मुड़ जाता! कुंभ लग्न वालों को परमात्मा का साक्षात्कार सीधा होता है।
स्वामीजी का मानना है कि जिस क्षेत्र में भी आप रहें श्रेष्ठ बनकर रहें। शिक्षक बनें तो श्रेष्ठ शिक्षक बनें, डॉक्टर बनें तो श्रेष्ठ डॉक्टर बनें, खिलाड़ी बनें तो श्रेष्ठ खिलाड़ी बनें, उद्योगपति बनें तो श्रेष्ठ उद्योगपति बनें, वैज्ञानिक बनें तो श्रेष्ठ वैज्ञानिक बनें, पत्रकार बनें तो श्रेष्ठ पत्रकार बनें।
नवयुवक अपना आदर्श ढूंढ रहे हैं, इन्हें विवेकानंद एवं महात्मा गांधी जैसे आदर्श मिल ही नहीं पा रहे हैं। अन्ना हजारे में आदर्श दिखा तो युवकों का समूह आगे आ गया।
स्वामीजी ने कश्मीर से कन्याकुमारी, केदारनाथ से रामेश्वरम तक उत्तर से दक्षिण एवं पूर्व से पश्चिम पूरे भारत की पैदल यात्रा की है। वे कहते हैं कि हर ग्यारह कोस पर मेरा शिष्य उपस्थित है जो विश्व कल्याण के कार्य में लगा हुआ है।
ऐसे विश्व विभूति, विश्व वंदनीय स्वामी दिव्यानंदजी तीर्थ जी को शत-शत नमन।