निमिश कुमार। कांग्रेस के दिग्गज नेता, इंदिरा गांधी के समय यूपी मुख्यमंत्री बने और फिर दो बार और। याने 3 बार यूपी के सीएम और 1 बार उत्तराखंड सीएम। कई मंत्रालयों के केंद्रीय मंत्री। आंध्रा प्रदेश के राज्यपाल रहे एनडी तिवारी के बेटे की मौत की खबर आई, तो फोन आया। अपूर्वा को लेकर दुख हुआ लेकिन कुछ ही दिन में पूरी फिल्म ही बदल गई और आज श्रीमती अपूर्वा शुक्ला तिवारी को उनके पति रोहित शेखर तिवारी, s/o एनडी तिवारी की हत्या मामले में अभियुक्त बनाया है।
सुश्री अपूर्वा शुक्ला से मुलाकात कुछ साल पहले इंदौर में हुई थी। उसके घरवाले उसकी शादी को लेकर चिंतित थे, कई लड़के दिखाएं, लेकिन परिवार और अपूर्वा की अपनी पसंद थी। फिर मुझे कहा गया- लड़का ढूंढों दिल्ली में। दिल्ली में क्यों? क्योंकि वो कुछ बड़ा करना चाहती थी, दिल्ली में। अपने वकील पिता से आगे बढ़कर वकील बनना चाहती थी, सुप्रीम कोर्ट की। नाम, दाम, पैसा-पॉवर सब चाहिए था उसे।
वो भी आज की अधिकांश भारतीय लड़कियों की तरह थी- बिलकुल क्यियर। दूसरी तमाम लड़कियों की तरह। बातें आदर्शवाद की, नारीवाद की, लेकिन सच्चाई? मेहनत नहीं करनी। सब थाली में परोस कर मिले। क्योंकि मैं लड़की हूं। खुद को सुंदर मानती हूं। (जैसी हर दूसरी लड़की)। बाहर निकलो तो लोग दीवानों की तरह पीछे दौड़े फिल्म अभिनेत्री की दीवानगी की तरह। सभा-संगोष्ठियों में विशेष अतिथि बनकर बुलाए जाए विद्वानों की तरह। पैसा हो तो नीता अंबानी जितना। लेकिन मेहनत? खुद का परिश्रम? खुद की तपस्या? परिणाम सामने है। आज की सबसे बड़ी खबर के रूप में।
लेकिन क्या अपूर्वा शुक्ला दोषी थी ऐसी महत्वाकांक्षाओं को लेकर? शायद नहीं। ये हमारा भारतीय समाज था, जिसने अब हम-आप सबके मन में ये भर दिया है कि - सफलता के मायने क्या हैं? सफल होना, फिर वो कैसे भी हो? पैसा, शोहरत, दिखावा...कैसे? समाज को इससे कोई मतलब बनीं। समाज लंबी सही राहों के लिए इंतजार नहीं करता, उसे शॉर्ट कट से कोई परहेज नहीं। और समाज के इस वहशीपन की सुमानी के सामने ना के बराबर ही टिक पाते है, वरना सबकों बह जाना होता है, आंखों में हजारों सपने लिए उस मुस्कराती लड़की अपूर्वा की तरह।
आईए, समाज के बुजुर्गों के लालच के वहशीपन से बचाएं युवाओं को, वरना मालूम नहीं कितनी अपूर्वा शुक्ला और सामने आएंगी। भगवान, समाज में पैसों के लालची, अपनी नाकामियों को छुपाते, और युवाओं को पैसों पर तोलते बुड्डों को मौत नहीं नारकीय जीवन दे। हर बात में पैसे लाने वाले बुड्डों को बीमारी दें, जवान संतान की मौत का दुख दें, बिगड़े नाती-पोते दें, बुढ़ाने में चरित्रहीन का दाग दें। अकेलापन दे।
आमीन्
लेखक श्री निमिष कुमार दिल्ली के प्रतिष्ठित पत्रकार हैं।