नई दिल्ली। आचार संहिता (ELECTION CODE OF CONDUCT) के नाम पर नौकरशाह सभी तरह के सरकारी काम ठप कर देते हैं, कई बार चुनाव आयोग (ELECTION COMMISSION) ने भी कहा है कि वो नियमित कामों को रोकने के पक्ष में नहीं है। अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय (ALLAHABAD HIGH COURT) ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि आचार संहिता के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो शैक्षणिक संस्थान को एक अध्यापक या कर्मचारी की नियुक्ति (APPOINTMENT OF TEACHERS AND EMPLOYEE) करने से रोकता हो। गाजियाबाद की निशा शर्मा की रिट याचिका स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने यह आदेश पारित किया।
निशा शर्मा का एक प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक के तौर पर चयन होने के बावजूद गाजियाबाद के बेसिक शिक्षा अधिकारी ने इस आधार पर उसे नियुक्ति देने से मना कर दिया था कि लोकसभा चुनावों के चलते आचार संहिता लागू हो गई है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील महेश शर्मा ने अदालत के समक्ष दलील दी कि याचिकाकर्ता का चयन सहायक अध्यापक के तौर पर किया गया था और बाद में गाजियाबाद के बीएसए ने भी अपनी मंजूरी दे दी जिसके आधार पर स्कूल के प्रबंधन द्वारा नियुक्ति पत्र भी जारी कर दिया गया, हालांकि, बाद में बीएसए ने 22 मार्च, 2019 को जारी आदेश के आधार पर उसे स्कूल में नौकरी में शामिल होने की अनुमति नहीं दी और कहा कि आचार संहिता लागू हो चुकी है।
याचिका स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों को अध्यापकों की नियुक्ति करने से रोकने का कोई प्रावधान नहीं है और इसलिए बीएसए के आदेश को रद्द किया जाता है। अदालत ने बीएसए को 10 दिनों के भीतर कानून के मुताबिक याचिकाकर्ता को नौकरी पर रखने के संबंध में एक नया आदेश पारित करने का निर्देश दिया।