भोपाल। आज दिनांक 15.04.2019 को मान सर्वोच्च न्यायालय में मान जस्टिस एस ए बोबडे एवं मान जस्टिस अब्दुल नजीर की पीठ में पदोन्नति में आरक्षण प्रकरणों की सुनवाई हुई। उक्त सभी प्रकरण मप्र, त्रिपुरा, बिहार, महाराष्ट्र और केंद्र शासन की पदोन्नति संबंधी विभिन्न याचिकाओं पर मान सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ के 30 सितंबर 2018 के निर्णय के आधार पर निस्तारित किए जाने हैं।
मान न्यायालय ने सभी प्रकरणों पर सुनवाई करते हुए सभी प्रकरणों पर यथास्थिति के अंतरिम आदेश पारित किए। प्रकरणों पर अब सुनवाई 15 अक्टूबर 2019 को होगी। उल्लेखनीय है कि मप्र में पूर्व से ही मान उच्च न्यायालय के दिनांक 30.04.2016 के निर्णय पर यथास्थिति के आदेश हैं। लेकिन शेष राज्यों और केंद्र शासन से संबंधित प्रकरणों पर ऐसा कोई अंतरिम आदेश नहीं था, किन्तु अब सभी राज्यों और केंद्र शासन के विभागों में अब मप्र की ही तरह यथास्थिति के आदेश लागू होंगे। अर्थात इन राज्यों और केंद्र के विभागों में भी अब पदोन्नतियां पूरी तरह प्रतिबंधित हो जाएंगी।
प्रकरण में केंद्र की ओर से महाधिवक्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता इंद्रा जयसिंह उपस्थित हुईं। जबकि प्रतिवादियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राजीव धवन, श्री मृगेंद्र सिंह व अन्य उपस्थित हुए। महाधिवक्ता द्वारा प्रकरणों में स्थगन आदेश चाहा गया जिसका प्रतिरक्षण करते हुए श्री धवन द्वारा बताया गया कि ऐसा किया जाना अनुचित होगा और मप्र के प्रकरण में पूर्व से ही यथास्थिति के आदेश हैं।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश में वर्ष 2016 से ही माना सर्वोच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश के बाद से पदोन्नतियां बाधित हैं। इस संदर्भ में पूरी प्रशासनिक व्यवस्था चरमराने के बावजूद न तो पूर्व सरकार ने कोई प्रभावी कार्यवाही की न ही वर्तमान सरकार ने इस पर ध्यान। दिया। यह सर्वविदित है कि इस प्रकरण और एट्रोसिटी एक्ट के कारण विधानसभा चुनाव के पूर्व काफी आंदोलन हुए थे जिनका प्रभाव भी परिलक्षित हुआ है। वर्तमान हालातों में लोकसभा चुनाव में मुद्दे का प्रभाव दिखाई पड़ सकता है।