नई दिल्ली। मद्रास हाई कोर्ट (MADRAS HIGH COURT) ने किशोर या किशोरावस्था (MINOR BOY OR GIRL) से थोड़ा अधिक उम्र के लड़के-लड़की के बीच यौन संबंधों (SEX) को कानूनी अमलीजामा पहनाने की वकालत की है। इस मामले में मद्रास हाई कोर्ट का मानना है कि 18 साल से कम उम्र की लड़की और एक किशोर या किशोरावस्था से थोड़ा अधिक उम्र के लड़के के बीच संबंध को 'पराया' या 'अस्वाभाविक' नहीं ठहराया जा सकता है।
हाई कोर्ट ने 16 से 18 साल की उम्र के बीच सहमति से बने यौन संबंधों को पोक्सो कानून (POCSO ACT) के दायरे से बाहर लाने का सुझाव भी दिया है। जस्टिस वी पतिबन ने शुक्रवार को साबरी नामक अभियुक्त की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात कही। साबरी ने नामक्कल की महिला अदालत द्वारा पॉक्सो कानून के तहत उसे दी गई 10 साल कैद की सजा को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता पर 17 साल की एक लड़की का अपहरण और उसके यौन उत्पीड़न का आरोप था।
कानून में संशोधन का सुझाव देते हुए जज पतिबन ने कहा कि 16 साल की उम्र के बाद सहमति से कोई यौन संबंध या शारीरिक संपर्क या संबद्ध कृत्य को पोक्सो कानून के कठोर प्रावधानों से बाहर रखा जा सकता है और यदि इस तरह का यौन उत्पीड़न होता है तो उसकी सुनवाई और उदार प्रावधानों के तहत की जा सकती है, जिसे इस कानून में ही शामिल किया जा सकता है।
जज पतिबन ने कहा कि कानून में इस हिसाब से संशोधन किया जा सकता है कि सहमति के यौन संबंध के मामले में अपराधी की आयु 16 साल या उससे अधिक उम्र की लड़की से पांच साल से अधिक नहीं हो सकती। ताकि लड़की से उम्र में बहुत अधिक बड़ा और परिपक्व व्यक्ति लड़की की कम उम्र और उसके भोलेपन का गलत फायदा ना उठा सके।
जस्टिस पतिबन ने राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एससीपीसीआर), सामाजिक संरक्षा आयुक्त, समाज कल्याण विभाग और दोपहर का भोजन कार्यक्रम को निर्देश दिया कि वो संबंधित अधिकारियों और विभागों के सामने इस मामले को रखें और यह पता लगाने के लिए कदम उठाएं कि क्या यह सुझाव सभी धड़ों को स्वीकार होगा। डीजीपी और एससीपीसीआर समेत अन्य संस्थाओं की रिपोर्ट पर विचार करते हुए जज ने कहा कि इस कानून की धारा 2 (डी) के तहत 18 साल से कम उम्र के व्यक्ति को 'बच्चे' के रूप में परिभाषित किया या है।
लड़के और लड़की के प्रेम संबंध के मामले में अगर लड़की की उम्र 16 या 17 साल की होती है तो लड़के के खिलाफ कठोर धाराओं के तहत कार्रवाई होती है और लड़के को कम से कम सात से 10 साल कैद की सजा होनी निश्चित है। लेकिन विपरीत लिंगों के बीच इस तरह के संबंध को अस्वाभाविक या पराया नहीं माना जा सकता। अदालत ने अभियुक्त को सभी आरोपों से बरी करते हुए निचली अदालत के फैसले को रद कर दिया। साथ ही पोक्सो कानून के तहत बढ़ते अपराधों और ऐसे मामलों में कठोर सजा पर चिंता भी जताई।