सर्वार्थ सिद्धि-अमृत सिद्धि योग में तीन जून को एक साथ सोमवती अमावस्या, वट सावित्री व्रत और शनि जयंती मनेगी। एक साथ तीन पर्व मनाने का महासंयोग 149 वर्ष बाद बना है। जहां सोमवती अमावस्या पर श्रद्धालु मन संबंधी दोषों के लिए चंद्रमा की पूजा करेंगे वहीं जो लोग शनि की साढ़ेसाती व महादशा से परेशान हैं वे शनिदेव को मनाएंगे। इसके अलावा वट सावित्री पर्व पर महिलाएं पति की दीर्घायु की कामना के लिए वटवृक्ष में कच्चे धागा लपेटकर परिक्रमा करेंगी।
यानि सभी राशियों के जातक इस दिन अपनी परेशानियों से मुक्ति के लिए विशेष पूजा पाठ करेंगे। मां चामुंडा दरबार के पुजारी पं. रामजीवन दुबे एवं ज्योतिषाचार्य विनोद रावत ने बताया कि वर्तमान संवत्सर 2076 परिधावी में राजा शनि और मंत्री सूर्य हैं। तीन जून को सूर्योदय से रात्रि तक सर्वार्थ सिद्धि- अमृत सिद्धी योग बना है। सोमवार को वट-सावित्री व्रत, सोमवती अमावस्या के साथ शनि जयंती है। यह तीनों पर्व मनाए जाएंगे।
सोमवार को त्रिग्रही योग
प. रामजीवन दुबे के मुताबिक सोमवार को बुध, मंगल और राहु का त्रिग्रही योग बन रहा है। केतु के साथ शनि की उपस्थिति होने से इसका असर प्रत्येक जातक पर पड़ेगा। उन लोगों के लिए खास दिन होगा, जो शनि की साढ़ेसाती, वृश्चिक, धनु, मकर एवं शनि के ढैय्या में वृषभ और कन्या राशि या जन्मकुंडली में शनि की महादशा या अंतर्दशा से परेशान चल रहे हैं। सभी राशियों के जातक इस दिन अपनी परेशानियों से मुक्ति के लिए विशेष पूजा पाठ करें, तो लाभ मिल सकता है।
सोमवती अमावस्या:
ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष में सोमवती अमावस्या सूर्योदय से दोपहर 3.27 तक रहेगी। सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं। सोमवार भगवान चंद्र को समर्पित दिन है। भगवान चंद्र को शास्त्रों में मन कारक माना गया है। यह दिन मन संबंधी दोषों के समाधान के लिए अति उत्तम है। महिलाएं पतियों की दीर्घायु की कामना के लिए व्रत रखती हैं।
शनि जयंती
तीन जून को शनि है। शनिदेव जातक को उसके कर्म के अनुसार फल देते हैं। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए बड़ा अवसर है। शनि जयंती के दिन काला कपड़ा, लोहा, काले तिल, उड़द, तेल के साथ फूल माला चढ़ाएं। दीपक जलाकर ऊं शं शनिश्चराय नम: मंत्र जाप के साथ पूजा-पाठ, अभिषेक, परिक्रमा करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है। श्री हनुमानजी की उपासना भी शनिदेव को प्रसन्न करने का उत्तम उपाय है।
वट सावित्री:
सोमवती अमावस्या के दिन ही सावित्री अपने पति परमेश्वर सत्यवान के प्राण यमराज से बचाकर लाई थी। इसलिए महिलाएं वट वृक्ष में कच्चा सूत, लपेटते हुए 108 परिक्रमा कर पूजापाठ करती हैं। अपने अखंड सौभाग्य एवं सुख समृद्धि के लिए यह महा संयोग वर्षों बाद बना है।