भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी में स्थित सचिवालय एवं मुख्यालयों में बैठे नौकरशाह प्रदेश के 300 से ज्यादा भ्रष्ट अधिकारियों को खुला संरक्षण दे रहे हैं। लोकायुक्त ने इन अधिकारियों के खिलाफ आईं शिकायतों की जांच की। जांच में भ्रष्टाचार होना पाया गया। लोकायुक्त ने दोषी अधिकारी को खोजा और उसके खिलाफ सबूत जमा किए। नियमानुसार विभाग के प्रमुख नौकरशाह के पास औपचारिक अनुमति के लिए मामला भेजा गया ताकि कोर्ट में चालान पेश किया जा सके परंतु नौकरशाहों ने अब तक अभियोजन की अनुमति ही नहीं दी है। जबकि नियम है कि 3 माह के भीतर अनुमति देनी ही होगी।
संसद ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में संशोधन करके अभियोजन स्वीकृति के लिए तीन महीने का समय सुनिश्चित किया है। इसके बावजूद इसका पालन शासन के विभागों द्वारा नहीं किया जा रहा है। राजस्व, सामान्य प्रशासन विभाग, पंचायत ग्रामीण विकास विभाग, नगरीय प्रशासन एवं पर्यावरण विकास विकास और गृह विभाग में क्रमश: 75, 47, 32 एवं 20 मामले अभियोजन स्वीकृति के लिए तीन माह से अधिक समय से लंबित हैं। इस तरह कुल 309 मामले विभाग प्रमुख के पास लंबित हैं, जिनमें अभियोजन की स्वीकृति प्रदान की जानी है। इस संबंध में समय-समय पर पत्र लिखकर अवगत भी कराया जाता है, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती है। राज्य शासन से अनुरोध किया गया है कि वह इस ओर ध्यान देगा और भ्रष्टाचारियों को बचाने का प्रयास बंद किया जाएगा।
नौकरशाहों की अनुमति की जरूरत ही क्यों होती है
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों ने हर मामले में किसी ना किसी बहाने से सारी पॉवर अपने हाथ में ही रखी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ मामलों में भी ऐसा ही किया गया है। दरअसल, एक अधिकारी के पास कई विभागीय काम भी होते हैं। कोर्ट में चालान पेश करने से पहले यह सुनिश्चित करना होता है कि संबंधित अधिकारी पद का दुरुपयोग ना कर ले इसलिए लोकायुक्त और भ्रष्ट अधिकारी के बीच नौकरशाह आ जाता है। हालांकि इस प्रक्रिया को अनुमति के बजाए नोटिस में भी बदला जा सकता है।