भोपाल। दिग्विजय सिंह ने आज कोहेफिजा स्थित महावीर दिगंबर जैन मंदिर में दर्शन किए। इसके उपरांत हनुमान मंदिर में प्रार्थना कर लोक मंगल की कामना की। श्री सिंह ने सिंधु भवन कोहेफिजा में आयोजित सभा में उपस्थित नागरिकों से कहा कि मैंने राघोगढ़ और राजगढ़ की जनता से राजनीतिक नहीं, परिवारिक रिश्ता रखा है। अब आपके साथ भी यही रिश्ता जोड़ने आया हूं। शिक्षा और बेरोजगारी को लेकर श्री सिंह ने कहा कि युवा पढ़ाई के साथ-साथ काम भी कर सकेगा।
श्री सिंह ने आज ईडन गार्डन, हलालपुरा बस स्टैंड से जनसंपर्क पदयात्रा की शुरुआत की। लोगों की भारी भीड़ ने उनका भव्य स्वागत किया जनसंपर्क के दौरान हलालपुरा में छोटे दुकानदार और आॅटो चालकों से मिले तथा अपने पक्ष में समर्थन मांगा। बस स्टैंड पर स्थित दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर में दर्शन किए विजय नगर, वल्लभनगर में पदयात्रा कर श्री दिग्विजय सिंह ने जनसंपर्क किया। उसके उपरांत सिद्धि विनायक मंदिर में भगवान श्री गणेश जी की पूजा कर आशीर्वाद लिया।
मैं स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी का अनुयायी हूं
श्री दिग्विजय सिंह जी ने कहा कि मैं धर्मनिष्ठ सनातनी हिंदू हूं। मैं भारत के धर्म प्राण आध्यात्मिक संत स्वामी विवेकानंद और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के धर्म पथ का अनुयायी हूं। धर्म मेरे लिए एक नितांत निजी मामला है मेरी अपनी आस्थाएं हैं, जिनका मैं निष्ठापूर्वक पालन करता हूं। यह ना तो राजनीति है और ना व्यापार और ना ही प्रचार। परंतु रयूमर स्प्रेडिंग सोसायटी की जहरीली कानाफूसीयों के कारण जागरूक समझदार नागरिकों तक अपना दृष्टिकोण पहुंचाना मैंने उचित समझा।
श्री सिंह ने कहा कि सन् 1893 की शिकागो धर्म सभा में जैसे ही उपस्थित जन समुदाय को संबोधित करते हुए स्वामी विवेकानंद ने कहा-मेरे भाइयों और बहनों (माय ब्रदर्स एंड सिस्टर्स) यह सुनते ही श्रोता भावविभोर हो गए। यह है भारत की संस्कृति की जो मानव मात्र में भाई-बहन को देखती है, मानती है। शिकागो वक्तव्य में स्वामी विवेकानंद ने कहा ‘‘मुझे उस धर्म का अनुयायी होने पर गर्व है जिसने विश्व को सहिष्णुता और सर्वभौमिक स्वीकार्यता का पाठ पढ़ाया। हम सभी धर्मों को सत्य मानते हैं। मुझे उस राष्ट्र का वासी होने पर गर्व है जिसने धरती के सभी धर्मों को मानने वालों और सभी राष्ट्रों के आए सताए हुए और विस्थापितों को शरण दी।’’
श्री सिंह ने कहा कि महात्मा गांधी ने जनवरी 1928 मैं अंतरराष्ट्रीय बंधुत्व संघ की सभा में कहा था कि लंबे अध्ययन और अनुभव के उपरांत मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि (१) सभी धर्म सच्चे हैं (२) सभी धर्मों में कोई ना कोई कमी है और (३) सभी धर्म मुझे उतने ही प्रिय हैं जितना मेरा हिंदू धर्म मैं अन्य मतों का भी उतना ही आदर करता हूं जितना अपने मत का। स्वामी विवेकानन्द और महात्मा गांधी भारत की अंतः चेतना के परम प्रतिनिधि हैं। उन्हीं की भूमि पर खड़ा भारत ‘‘सारे जहां से अच्छा है।’’ मैं उन्हीं के धर्म पथ का एक विनम्र अनुगामी हूं मुझे अपनी इसी धर्म निष्ठा पर गर्व है।