छतरपुर। किसी भी स्वाभिमानी पुलिस तंत्र के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता कि एक विधवा महिला अपने मृत पति की अस्थियों को विसर्जित करने से पहले न्याय की प्रत्याशा में पुलिस अधीक्षक के पास तक पहुंच जाए और इससे ज्यादा शर्मनाक भी कुछ नहीं हो सकता कि उसे तत्काल न्याय उपलब्ध कराने के बजाए जांच की लम्बी प्रक्रिया में उलझा दिया जाए।
पिता ने अंतिम संस्कार तक नहीं किया
मामला मध्य प्रदेश में छतरपुर जिले के हरपालपुर का है। प्रियंका नामक एक महिला अपने गले में पति की अस्थियां लटकाए अपनी दो बेटियों के साथ न्याय की आस लेकर एसपी ऑफिस पहुंची। पीड़ित महिला प्रियंका सोनी का कहना है कि बीते 12 मई को उसके पति रविंद्र की कैंसर से मौत हो गई थी। ऐसे में महिला का आरोप है कि मौत के बाद उसके पति का शव उसके ससुर रामदास ने अपने घर पर रखने से मना कर दिया।
समाज के लोगों ने उन्हें काफी समझाया, लेकिन ससुर ने अपने बेटे का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया। ससुर की इस हरकत से विवाद बढ़ा तो पुलिस ने इस मामले में हस्तक्षेप किया लेकिन पिता अपने बेटे का अंतिम संस्कार करने को तैयार नहीं हुआ। तब मृतक की 4 साल की बेटी ने श्मशान घाट जाकर पिता को मुखाग्नि दी।
इसी क्रम में गुरुवार को मृतक की पत्नी अपनी दो मासूम बेटियों और गले में पति की अस्थियां लिए एसपी ऑफिस पहुंची। उसने पुलिस से गुहार लगाई कि उसे और उसके बच्चों को ससुराल वाले साथ रख लें। इस पर एडिशनल एसपी जयराज कुबेर ने नौगांव एसडीओपी को इस मामले मे जांच के आदेश दिए हैं। प्रश्न सिर्फ इतना सा है कि यदि नौगांव एसडीओपी का प्रबंध सफल होता तो महिला को एसपी आफिस तक आने की जरूरत ही क्या थी। एक नाकाम अधिकारी मामले में क्या न्याय दिला पाएगा।