नई दिल्ली। लोकसभा के चुनाव (ELECTION) 2019 जैसे-तैसे सम्पन्न हो गये | एक्जिट पोल (Exit poll) एनडीए (NDA) की सरकार बनने की उम्मीद देश को दिखा रहे है| समूची चुनाव प्रक्रिया के बाद कांग्रेसाध्यक्ष राहुल गाँधी (RAHUL GANDHI) ने देश के चुनाव आयोग पर ऊँगली उठाते हुए ट्विट किया है कि “चुनाव आयोग मोदी (मोदी के हाथों में खेल रहा है| भारत में ऐसा पहली बार कहा गया है, उनकी और कुछ अन्य दलों की मंशा क्या है? यह साफ दिख रहा है, अगर 23 मई को आने वाले परिणाम एक्जिट पोल से इतर हुए तो देश में राजनीतिक माहौल किसी और दिशा में जा सकता है| अभी तो चुनाव परिणाम घोषित करने वाले चुनाव आयोग पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया गया है| ऐसा करना तो आपत्तिजनक है ही और अगर ऐसा हुआ है तो घोर आपत्तिजनक |
वैसे चुनाव आयोग के भीतर भी सब ठीक नहीं चल रहा है.चुनाव आयोग के भीतर तनाव का माहौल है, चुनाव परिणाम का नहीं बल्कि आपसी खींचतान का | तीसरे चुनाव आयुक्त अशोक लवासा मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा को पत्र लिख चुके है कि उन्हें मजबूर किया जा रहा है कि आयोग की संपूर्ण बैठक में शामिल न हो| उनकी असहमतियों को दर्ज नहीं किया जा रहा है| संपूर्ण बैठक में तीनों आयुक्त शामिल होते हैं| हर बात दर्ज करना परम्परा है| यह खींचतान की ख़बर हर भारतीय को परेशान करती है कि आयोग के भीतर कहीं कोई और खिचड़ी तो नहीं पक रही है| यह सबको मालूम है कि अशोक लवासा ने प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ की गई शिकायतों के फैसले में भी असहमति दी थी| तब आयोग पर आरोप लगा था कि वह आचार संहिता के उल्ल्घंन के मामले में प्रधानमंत्री का बचाव कर रहा है| वैसे भी आचार संहिता से तो राजनीतिक दल खुल कर खेल रहे हैं | बंगाल उदहारण है | मतदान के दौरान टी एम् सी उम्मीदवार का रोड शो और हिंसा किसी से छिपे नहीं है |
अशोक लवासा अपने पत्र में लिख चुके है कि आयोग की बैठकों में उनकी भूमिका अर्थहीन हो गई है, क्योंकि उनकी असहमतियों को रिकॉर्ड नहीं किया जा रहा है| उन्होंने यह भी लिखा मैं अन्य रास्ते अपनाने पर विचार कर सकता हूं ताकि आयोग कानून के हिसाब से काम कर सके और असमहतियों को रिकार्ड करे | किसी चुनाव आयुक्त का यह लिखना कि आयोग कानून के हिसाब से काम नहीं कर रहा है| यह गंभीर आरोप है | ऐसे में आयोग की निष्पक्षता पर प्रश्नचिंह लगता है |सहज सवाल है जनता का, चुनाव आयोग करवा रहा है या कोई दल अपने इशारों पर चुनाव करवा रहा है| चुनाव आयुक्त अशोक लवासा के इस पत्र हल्के में नहीं लिया जा सकता है| वैसे ही तमाम तरह के आरोप चुनाव आयोग पर लग रहे हैं| नतीजे ही बतायेंगे कि चुनाव मैनेज किया गया है या नहीं ? इस विषय को लेकर राजीव गाँधी और पी चिदम्बरम के ट्विट राजनीतिक हथकंडा भी हो सकते हैं |
दूसरी ओर सुनील अरोड़ा के तर्क भी काबिले गौर हैं “सिर्फ क्वासी ज्यूडिशियल मामलों में अल्पमत की राय रिकॉर्ड की जाती है” आचार संहिता के उल्लंघन पर जो फैसला दिया है वह अर्ध न्यायिक किस्म का नहीं है| परम्परा है कि ऐसी संस्थाओं की बैठकों के मिनट्स दर्ज होते हैं| चुनाव आयोग में ऐसा कौन सा नियम है? इसकी जानकारी उजागर नहीं की गई है | चुनाव परिणाम को लेकर सतर्क रहने की ज़रूरत है| पूत के लक्षण पालने में दिखते है की तर्ज पर सब असामान्य सा दिख रहा है | सब शुभ हो, इसकी उम्मीद की जा सकती है |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।