नई दिल्ली। 2019 के आम चुनाव (ELECTION) में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिल गया, भाजपा अपने NDA के साथियों से वादा निबाहते हुए सरकार बनाएगी। सरकार बनाना उसका काम है और वादा निभाना भी। देश के नागरिक चुनावी माहौल से निकल अपने कामों पर लौट रहे हैं, भाजपा और भाजपा नीत गठबन्धन के जिम्मे अब उन वादों को निभाने का काम है, जो उसने देश के मतदाताओं से किये हैं। भाजपा की सर्वोच्च प्राथमिकता मतदाता से किये वादे निभाने की होना चाहिए। अब 2014 से 2018 तक दोहराया गया बहाना “बहुमत नहीं है,” नहीं चलेगा। वादा करके न निभाने का हश्र कांग्रेस के हाल को देख, समझ लीजिये। कांग्रेस की रीढ़ हिल गई है, उसके राजे- महाराजे, साहबजादे, अप्पू-पप्पू सब ठिकाने लग गये हैं। यह बहुमत जिन मतदाताओं ने दिया है, उनमें सभी वर्ग के नागरिक शामिल है। पहली बार मत देने वाले और अगला चुनाव न देख पाने की उम्र में पहुँच चुके वयोवृद्ध भी। सबकी उम्मीद है, नई सरकार वादा निभाएगी।
इस बार चुनाव कई चरणों में हुए हैं, पहले चरण से अंतिम चरण तक। नतीजे और उम्मीद एक समान हैं और पूरी न होने तक रहेंगी। कांग्रेस के कई बड़े नेताओं के मुगालते टूट गये। मध्यप्रदेश को ही देख लें सारे बड़े नाम जो अपनी पहचान किसी बड़े घराने से रखते हैं, हार गये हैं। इनमे वे भी शामिल हैं, जो अपने को राहुल गाँधी का विकल्प मानते थे। सही मायने में कांग्रेस कुछ सीटों पर आधे-अधूरे मन से मैदान में थी। जैसे- गुना।ज्योतिरादित्य न तो उत्तरप्रदेश के उस भाग में कोई चमत्कार दिखा सके, जिसके वे प्रभारी थे और न गुना की अपनी सीट ही बचा सके। सनातनी हिन्दू दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) सारे बाबाओं के आशीर्वाद, मिर्ची हवन, के साथ माफ़ी-तलाफी में भी लगे। जनता ने माफ़ नही साफ़ कर दिया, हार का इतना बड़ा आंकड़ा साफ होना ही है। “हिन्दू आतंकवाद” जैसा शब्द भारी पड़ा। दिग्विजय अभी राज्यसभा सदस्य हैं, उनके एक और साथी विवेक तनखा भी राज्यसभा में हैं, वे भी जबलपुर जैसी सीट पर हार गये हैं। अब इन दोनों राज्यसभा सदस्यों को विचार करना चाहिए कि जिस जनता के प्रतिनिधि वोट से ये दोनों राज्यसभा में गये है, उस जनता ने प्रत्यक्ष मतदान में इन पर विश्वास व्यक्त नही किया है। इनके नीचे से दरी खींच ली है। दोनों को फौरन फैसला लेना चाहिए कि क्या वे अब भी राज्यसभा में प्रदेश की जनता के प्रतिनिधि, रहे हैं ?
मतदाता के सारे सवाल अब भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार से है. रोजगार, विकास, पेयजल जैसे जरूरी मुद्दों के साथ समान नागरिक संहिता और राममन्दिर जैसे वादे उसकी तरफ हैं। काला धन वापिस लाने का पिछला वादा न निभा सके तो भी जनता ने बुरा नहीं माना, माफ़ कर दिया। जिन वादों की पूर्ति अब उसकी अपेक्षा है, उनमे समान नागरिक संहिता राम मन्दिर और समग्र विकास हैं। यह समझ लीजिये, जनता का यह कृपा-प्रसाद है, इससे सरकार को चिरंजीविता भी मिल सकती है और वादा खिलाफी, कल्पना से कई गुनी भारी है। कांग्रेस का हश्र सामने है, अपने वादों के साथ नेपथ्य में जाना अब उसकी मजबूरी है। भाजपा जनता की आवाज़ समझ ले, वादा निभाना जरूरी है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।