आम चुनाव 2019 में बहुमत के साथ विजयी भाजपा नीत एनडीए सरकार कुछ घंटों के बाद शपथ लेकर अपना कामकाज शुरू कर देगी | हर सरकार की नीति और कामकाज उसके नेता के दृष्टिकोण का ही विस्तार होता है | यही दृष्टिकोण राष्ट्र को प्रगति या अवनति की ओर ले जाता है | आज भारत जिस स्थान पर खड़ा है उसके सामने भीतर और बाहर से अनेक चुनौतियाँ है | सबसे बड़ी चुनौती विभाजन की है | अपने- अपने न्यस्त स्वार्थों के कारण हम भारतीय अलग-अलग खांचों में बंटे हुए हैं | चुनाव के दौरान ये खाई और बड़ी करके दिखाई जाती है | हर खांचे का इस्तेमाल वोट बैंक की तरह होता है |
नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों जो बात कही उससे कुछ हद तक सहमत हुआ जा सकता है |उन्होंने कहा कि भविष्य में दो ही जातियां रहने वाली हैं: एक तो वे जो गरीब हैं और दूसरी वो जो गरीबों के उद्घार के लिए काम करती हैं। इसके दो प्रतिफलन हैं | एक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रतिनिधत्व दिखता है तो दूसरा अक्स मार्क्सवाद के मूल जातीय गौरव और जातीय अंतर का खात्मा की और नए सोच का निर्माण प्रदर्शित करता है | वैसे उनके इस वक्तव्य को कई तरह से देखा जा सकता है। देश में गरीबी को लेकर बहस के जो और रूप हैं, वे कुछ मायनों में इसके विरोधाभासी हैं। मोदी यहां सशक्तीकरण के बजाय परोपकार की बात कर रहे हैं। यदि ऐसा नहीं था तो उनका वाक्य और उसके अर्थ अलहदा होते |
प्रधानमंत्री के इस नजरिये को देश की तमाम जातियों और वर्गों से सराहना मिली है। मोदी जिस सामाजिक बदलाव का नेतृत्व कर रहे हैं, उसके प्रकाश में समाज के आपसी रिश्तों पर विचार करना अत्यंत आवश्यक है। मोदी ने अपने ओबीसी का बताया और उन्हें इसका फायदा भी मिला। पहले उन्हें इसका लाभ उत्तर प्रदेश की जातीय राजनीति में मिला जहां समाजवादी पार्टी को गैर यादव ओबीसी का साथ नहीं मिला और दूसरा उन्होंने खुद को ऐसी कई परंपराओं से दूर रखा। मोदी ने भारत जैसे जातीय विभाजन में घिरे हुए देश को लेकर जो दावा किया है वह किसी आकांक्षा से अधिक एक तरह का अपमार्जन नजर आता है। इसे चिन्तन की एक धारा सवर्ण उभार का नाम दे रही है। इस तरह के विचार के पीछे खड़े तर्कों का आधार जग जाहिर है | वे खांचे को तोडना नहीं चाहते बल्कि उसके स्वरूप को मनमाफिक ढालने का प्रयास करते हैं | युवाओं में एक नए तरह की चेतना का उभार हो रहा है | ये युवा अपना पुराना गौरव वापस चाहते हैं। जिसके लिए देश के हर नागरिक के साथ सरकार को भी काम करना होगा | खांचे की समाप्ति और हर नागरिक को भारतीय होने के गौरव | हम भारतीय खास कर युवा पीढ़ी इतिहास के खांचे में बांटने वाले रुख को मोड़ सकती है | उसे इस सब के लिए आश्वस्ति चाहिए सम्पूर्ण समाज और सरकार से |
धर्म, जाति और राष्ट्रवाद इन दिनों उभरे हैं | यह दो तरफा वार करने वाला औजार है | इससे सर्व समाज भाजपा की ओर आकर्षित हुआ | अब भाजपा की बारी है और नई केबिनेट को अवसर, कि वो इस औजार का कैसे इस्तेमाल करती है | औजार और हथियार में अंतर होता है | औजार बनायेंगे तो निर्माण होगा और हथियार बनाया तो हिंसा बढेगी | निर्णय सरकार को करना है और यह उसकी अग्निपरीक्षा है |अभी सरकार हिंदुत्व और संस्कृतिकरण के माध्यम से अपनी नई जगह बनाना चाहती है । संस्कृतिकरण परिणामकारी हो सकता है, अगर देश के सारे नागरिक अपने को भारतीय के रूप पहचान दें | खांचों की पहचान से समुदाय बनते हैं, राष्ट्र नहीं | भारतीय होने का गौरव पिछले ७० सालों में न जाने किन-किन कारणों से अपनी चमक खोता रहा है | इसे पहला और अंतिम अवसर नहीं कहा जा सकता, यह बदलाव की बयार है | इस बयार को हम सब सुरभित कर सकते हैं, भारतीयता की चमक और गौरव को आत्म सम्मान बना सकते हैं | कुछ सरकार करे, हम ज्यादा करें | भारतीय कहलाना विश्व में गर्व का विषय हो जाये |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।