भोपाल। स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा 0-30% परीक्षा परिणाम देने वाली शालाओं में गुणवत्ता सुधार के नाम पर शिक्षकों की परीक्षा लेने का फरमान जारी किया गया है। ज्ञात होवे कि मध्यप्रदेश के सभी स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है। बहुत से स्कूल तो सिर्फ अतिथि शिक्षकों के भरोसे चल रहे हैं। और ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में विषय विशेषज्ञ अतिथि शिक्षक ढूंढने से नहीं मिलते। वहीं बीच सत्र में अगस्त से अक्टूबर महीने में अतिथि शिक्षकों की भर्ती की जाती है तब तक तीन चार माह की पढ़ाई चौपट हो जाती है।
ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकांश हाईस्कूल, हायर सेकेण्डरी स्कूलों में एक या दो नियमित शिक्षक होते जो रात-दिन विभिन्न विभागीय योजनाओं जैसे सायकिल, छात्रवृत्ति, छात्र मेपिंग, छात्रों का खाता नंबर, आधार नंबर, समग्र आईडी नंबर, बोर्ड में पंजीयन, प्रतिभा पर्व और दिन प्रतिदिन नई नई जानकारियों की डाक बनाने में ही उलझे रहते हैं। ऐसी विषम परिस्थितियों में भी शिक्षक विभाग की योजनाओं को विधिवत संचालित करते हुए भी अध्यापन कार्य पूरा करते हैं।
शासन की दोषपूर्ण नीति के आदेशानुसार कक्षा पहली से आठवीं तक सभी छात्रों को कक्षोन्नति देना अनिवार्य है। जिसके कारण दक्षता पूर्ण नहीं करने वाले छात्र भी अगली कक्षा में कक्षोन्नति पा जाते हैं।
इसके बाद भी गुणवत्ता सुधार के नाम पर सिर्फ शिक्षकों की परीक्षा लेना शिक्षक के पद की गरिमा के खिलाफ है। राज्य अध्यापक संघ की जिला इकाई इस परीक्षा का विरोध करती है और शासन से मांग करती है कि पहले सभी स्कूलों में विषयवार पर्याप्त संख्या में शिक्षकों की भर्ती की जाए, शिक्षकों को स्कूल की बाबूगिरी और गैर शिक्षकीय कार्य से मुक्त करने के बाद यदि किसी स्कूल का परीक्षा परिणाम कम होने पर संबंधित शिक्षकों पर सीधे कार्यवाही की जाए। राज्य अध्यापक संघ की जिला इकाई अध्यक्ष डी के सिंगौर नैनपुर ब्लॉक अध्यक्ष संजीव सोनी ने इस तुगलकी फरमान के खिलाफ 1जून को मुख्यमंत्री जी के नाम कलेक्टर को ज्ञापन सौंपेंने की अपील की है।