डॉ अजय खेमरिया | 2019 का सियासी संग्राम (Political warfare) अपने अंतिम पड़ाव पर है बंगाल की बबाल के बीच अब सवाल उस सूरत को लेकर है जो 23 मई को बनने वाली है? राजनीतिक (Political) पंडितो को 2014 में मोदी (MODI) मैजिक ने गलत साबित कर दिया था 2019 में क्या सीन होने वाला है? इसे लेकर इस बार पोलिटिकल पंडितो की जमात बंटी हुई है एक जमात जिसमे कतिथ रुप से वे पत्रकार भी शामिल है जो मोदी से खुले रूप में नफरत को सार्वजनिक करते है तो एक वर्ग मोदी समर्थको का भी है इस चुनाव (ELECTION) की एक खासियत यह भी है की देश के लगभग हर वर्ग में भारतीय पत्रकारिता की जाहिर औऱ छुपी निष्ठाओं को उजागर कर दिया है जो लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की विश्वसनीयता औऱ निष्पक्षता के लिये एक त्रासदी से कम नही है।
भारतीय पत्रकार जगत में इस स्थिति को लेकर हलचल साफ देखी जा सकती है। हम 23 मई की भावी सूरत की चर्चा कर रहे है इसलिये स्वाभाविक ही है कि परिणाम के पूर्वानुमान दो तरह के ही होने है एक वह वर्ग है जो मोदी की विदाई के गीत लिख चुका है और दूसरा वह जिसे यह चुनाव प्रो इनकम्बेंसी नजर आ रहा है।मोदी विरोधी वर्ग का अनुमान है कि नोटबन्दी,जीएसटी,रोजगार,15 लाख ,दलित नाराजगी,अल्पसंख्यक धुर्वीकरण औऱ यूपी का महागठबंधन मिलकर मोदी को लुटियंस से बाहर करने वाले है सबसे पहले इस वर्ग की पड़ताल कीजिये क्या वास्तव में मोदी की विदाई के ये आधार इतने मजबूत है ?बात सबसे पहले कांग्रेस की। बीजेपी के बाद यही एक मात्र राष्ट्रीय दल है पिछले चुनाव में इसका आंकड़ा 44 का था मोदी को बाहर करने के लिये बुनियादी रूप से कांग्रेस का तीन अंको में पहुँचना अनिवार्य है लेकिन मौजूदा हालात कांग्रेस को 44 से कितना दूर ले जाते दिखाई दे रहे है?मप्र,छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब,कर्नाटक,केरल,महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा, ,गुजरात मिलाकर 10 राज्य है जहां कांग्रेस सीधे मुकाबले में है अगर हम इन राज्यों की टेली देखे तो अधिकतम क्या तस्वीर बन रही है मप्र में 29 सीटों में से 10,राजस्थान ने 25 में से 8,छत्तीसगढ़ में 7, पंजाब में 13 में 10,कर्नाटक में 28 में 15,केरल में 20 में से 10,महाराष्ट्र में 48 में से 15 झारखंड में 14 में से 7, हरियाणा में 10 में से 5 गुजरात मे 26 में 6 ।ये इन राज्यो में कांग्रेस का अधिकतम प्रदर्शन हो सकता है इसे जमीनी पकड़ औऱ अध्ययन रखने वाले पॉलिटिकल पण्डित नकार नही सकते है यानी कांग्रेस का अधिकतम आंकड़ा मोदी लहर की समाप्ति के बाद भी 93 से आगे नही जा रहा है ।फिर याद रखे ये अधिकतम अनुमान है। शेष दिल्ली, हिमाचल, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, गोआ, पंडुचेरी, नॉर्ट ईस्ट, यूपी, बिहार, तमिलनाडु, ओडिशा, बंगाल, आंध्रा, तेलंगाना जैसे अन्य छोटे बड़े राज्यो में कांग्रेस कहा है? यूपी में उसकी ताकत 2 से ज्यादा नजर नही आ रही बिहार,तमिलनाडु, बंगाल,दिल्ली जैसे राज्यो में वह मुकाबले में है नही इसलिये इन राज्यो में कांग्रेस को अधिकतम क्या हांसिल होना है अनुमान लगाना ज्यादा कठिन नही है।
जाहिर है फिलहाल 2019 की तस्वीर में कांग्रेस 100 के आंकड़े को पार पा लेगी इसकी दावे से पुष्टि कोई जमीनी जानकर करने का जोखिम नही लेगा।ऐसे में मोदी लहर को रोकने के राहुल गांधी औऱ मोदी विरोधी मीडिया के दावों को स्वीकार्य करना जरा मुश्किल ही है । इसके उलट मायने क्या है ? क्या मोदी को चुनोती राफेल पर सवार राहुल से नही बल्कि क्षेत्रीय क्षत्रियों से मिली है इसे हमें काफी कुछ स्वीकार करना होगा। यूपी की 80 सीटो में माया अखिलेश मोदी का मुकाबला कर रहे है बिहार में लालू के कुनबे के आगे कांग्रेस की भूमिका नगण्य है ,तमिलनाडु, आंध्र, तेलंगाना, ओडिशा,नॉर्थ ईस्ट में कही भी कांग्रेस मुकाबले में नही है।ममता,माया,चन्द्रबाबू, अखिलेश, केजरीवाल, केसीआर, स्टालिन, मिलकर 150 सीट पर कब्जा जमा भी लें तब भी काँग्रेस औऱ इस तीसरे मोर्चे की कहानी 250 तक नही पहुँच रही है ।अब इस सियासी तस्वीर के तीन खिलाड़ीयो पर नजर भी लगाईये पहले है ओडिशा के नवीन पटनायक, आंध्र के जगनमोहन,औऱ 150 क्लब के मेम्बर केसीआर। इन तीनों की अपनी आंतरिक मजबूरियां है अगर पहली जमात के सियासी पंडितो की भविष्यवाणी सही भी साबित हो जाये तो ये तीन खिलाड़ी क्या करेंगे इसका मुजायरा नवीन बाबू औऱ मोदी की हाल ही हवाई यात्रा से तय हो चुका है जगनमोहन की सियासी मजबूरी चंदबाबू के साथ दुश्मनी बरकरार रखना ही है कमोबेश केसीआर खुद डिप्टी पीएम की मंशा जाहिर कर अपनी अंतहीन महत्वाकांक्ष को रेखांकित कर चुके है जाहिर है मामला मोदी की विदाई का उतना आसान नही है जितना मोदी विरोधी जमात को महसूस हो रहा है।
जेडीयू,शिवसेना, अकाली,लोकजन शक्ति, अन्नाद्रमुक,एजीपी,जैसे सहयोगी दल क्या मिलकर 30 से 40 सीट नही पा रहे है ?जबाब कितना भी न्यून करके लिखिये इससे कम संभव नही है।यानी बीजेपी की 282 से 50 सीट कम कर दीजिये और 20 कम कर दीजिये यानी 70 सीट खोने के बाद भी यह आंकड़ा लहभग 220 से कम फिलहाल नजर नही आ रहा है यानि इन मोदी विरोधी जमात की दलीलों के बीच मोदी खारिज नही हो रहे हैं ये जमीनी हकीकत है अगर बीजेपी का आंकड़ा 200 भी पहुँचता है औऱ उसके सहयोगी40 सीट लाते है तो केसीआर, जगन, औऱ नवीन बाबू एनडीए सरकार के साथ ही खड़े होंगे यह दीवार पर लिखी इबारत की तरह मोटे हरूफ में लिखा दिख रहा है।यानि 100 कांग्रेस 150 अन्य के बाबजूद यूपीए के लिये मामला आसान नही रहने वाला।
अब इस पूर्वानुमान से हटकर जमीन पर दिखाई दिये एक अंडरकरंट की बात भी कर लें मेरा संसदीय क्षेत्र गुना शिवपुरी 1962 से सिंधिया राजपरिवार के प्रभुत्व वाला संसदीय क्षेत्र है यहां बीजेपी ,कांग्रेस नही लोग सिंधिया राजपरिवार के लिये वोट करते है यहां दलों का नही केवल महल का वर्चस्व है 2014 में मोदी खुद सभा करने यहां आए शिवराज सिंह ने 20 सभाएं की फिर भी राजपरिवार का प्रभुत्व बना रहा। लेकिन 2019 में यहां हालात बदले हुए दिखे बीजेपी ने यहां अब तक सबसे कमजोर केंडिडेट उतारा पूरे चुनाव से बीजेपी गायब रही लेकिन इसके बाबजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया यूपी का प्रभार छोड़ कर यहां अपनी पत्नी के साथ दिन रात लगे रहे उनकी राज्य सरकार के 8 मंत्री वोटिंग तक यहां डटे रहे।कारण सिर्फ मोदी लहर थी क्योंकि मेरे घर पर रसोई में हाथ बंटाने वाली किरण सेन मोदी को वोट देकर आई है क्योंकि उसका पक्का घर बन गया और 1 लाख का बिजली बकाया शिवराज ने माफ किया।
मोदी से नफरत करने वाले शायद इस जमीनी हकीकत से आंखे चुरा रहे है कि प्रधानमंत्री आवास, उज्ज्वला, जनधन, जहाँ मोदी के निजी वोट बैंक में बढ़त वाला साबित हुआ है वही पुलवामा एयर स्ट्राइक,मजबूत सरकार,विदेश में भारत की बढ़ी हुई शान,पिछडी जाती की अपील के अलावा संघ की ताकत मिलकर मोदी के लिए मज़बूत जमीन बनाने में लगे रहे है।शायद इसी फीडबैक के भरोसे प्रधानमंत्री ने बंगाल के बबाल के बाद अपना एग्जिट पोल खोलते हुए 300 सीट का दावा कर दिया है।कमोबेश अमित शाह का दावा भी इसी आंकड़े की पुष्टि करता है।असल एग्जिट पोल 23 को सामने आएगा ।