नई दिल्ली। अमेरिका के नेशनल एयर स्पेस म्यूजियम (US National Air Space Museum) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि चंद्रमा सिकुड़ता (Moon shrinking) जा रहा है। ऐसा उसकी अंदरूनी सतह ठंडी होने की वजह से हो रहा है। पिछले करोड़ों सालों में पृथ्वी का यह उपग्रह 50 मीटर तक सिकुड़ चुका है। इसकी वजह से अब वहां भूकंप आ रहे हैं। इनमें से कुछ की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 5 तक आंकी गई है। यह रिपोर्ट नेचर जियोसाइंस जर्नल (Nature Geoscience Journal) में प्रकाशित हुई है।
अमेरिका के नेशनल एयर एंड स्पेस म्यूजियम के वैज्ञानिक थॉमस वेटर्स (Scientist Thomas Veters) के मुताबिक, चंद्रमा की सतह पर झुर्रियां कुछ उसी तरह से दिखाई पड़ती हैं, जैसे अंगूर के किशमिश बनने के दौरान दिखाई देती हैं। हालांकि, दोनों में केवल इतना अंतर है कि अंगूर की बाहरी सतह लचीली होती है, जबकि सिकुड़ने पर चंद्रमा की सतह फटने लग जाती है।
चंद्रमा पर 10 मीटर ऊंचे थर्स्ट फॉल्ट
वेटर्स का कहना है कि सिकुड़न पैदा होने से उपग्रह पर थर्स्ट फॉल्ट बनने लगे हैं। इस प्रक्रिया में चंद्रमा की एक सतह दूसरी पर चढ़ने लग जाती है। इनकी वजह से ही वहां तीव्र गति के भूकंप आ रहे हैं। उनका कहना है कि थर्स्ट फॉल्ट का आकार सीढ़ियों की तरह से होता है। तकरीबन 10 मीटर ऊंचे फॉल्ट कई किमी में फैले हुए हैं।
अपोलो मिशन के उपकरणों के जरिए पता चला
वेटर्स का कहना है कि अपोलो मिशन 11, 12, 14, 15 और 16 के जरिए चंद्रमा पर सेस्मोमीटर्स रखे गए थे। इनसे मिलने वाले डेटा की गणना करने पर ही वैज्ञानिक चंद्रमा पर हो रहे बदलाव और भूकंप की जानकारी जुटा पा रहे हैं।
अपोलो 11 के जरिए चंद्रमा पर स्थापित किया गया सेस्मोमीटर तीन सप्ताह तक ही काम कर सका, लेकिन बाकी के उपकरणों से पता चला कि 1969 से 77 के बीच उपग्रह पर 28 छोटे भूकंप आए थे। रिएक्टर स्केल पर इनकी तीव्रता 2 से 5 तक आंकी गई। जब अध्ययन और ज्यादा गहराई में किया गया तो पता चला कि इनमें से 8 भूकंप फॉल्ट के 30 किमी दायरे में आए थे।
नासा का लुनार स्पेसक्राफ्ट (एलआरओ) थर्स्ट फॉल्ट के बारे में ज्यादा सटीक जानकारी देता है। इसके कैमरे से जो तस्वीरें ली गईं उनमें 35 सौ से ज्यादा फॉल्ट देखने को मिले हैं। वेटर्स का कहना है कि अपोलो मिशन के जरिए चंद्रमा पर रखे गए सेस्मोमीटर्स और नासा के एलआरओ के कैमरे से जो जानकारी मिली वो हैरत में डालने वाली है।