नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस संजीव खन्ना की अवकाशकालीन पीठ ने सोमवार को केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (सीटीईटी) 2019 आरक्षण विवाद पर प्रस्तुत हुई याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि किसी भी प्रकार की प्रवेश या पात्रता परीक्षा में किसी भी तरह का आरक्षण लागू नहीं किया जा सकता। यह असंवैधानिक है। इसी के साथ पीठ ने आरक्षण की मांग वाली याचिका खारिज कर दी।
पीठ ने कहा कि किसी भी वर्ग के लिए आरक्षण का मुद्दा प्रवेश के समय ही आएगा। पीठ ने कहा, ‘प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए किसी प्रकार का आरक्षण नहीं हो सकता। यह पूरी तरह से गलत धारणा है। यह (सीटीईटी) सिर्फ पात्रता प्राप्त करने की परीक्षा है। आरक्षण का सवाल तो प्रवेश के समय उठेगा।' याचिकाकर्ता रजनीश कुमार पांडे और अन्य के वकील ने जब सात जुलाई को होने वाली सीटीईटी परीक्षा की अधिसूचना का जिक्र किया तो पीठ ने कहा, ‘परीक्षा की अधिसूचना अनुसूचित जाति और जनजाति के सदस्यों को भी किसी प्रकार का आरक्षण प्रदान नहीं करती है।’
पीठ ने इन टिप्पणियों के साथ ही पहले याचिका खारिज कर दी परंतु बाद में याचिकाकर्ता के आग्रह पर इस मामले पर 16 मई को विचार के लिए तैयार हो गई। याचिकाकर्ताओं का दावा था कि वे समाज के आर्थिक रूप से कमजोर तबके के हैं और सीटीईटी-2019 की परीक्षा में बैठ रहे हैं।
गौरतलब है कि सीबीएसई ने 23 जनवरी 2019 को इस परीक्षा के आयोजन के बारे में एक विज्ञापन प्रकाशित किया था जिसमें समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के अभ्यर्थियों को यह लाभ नहीं दिया गया था इसीलिए याचिकाकर्ताओं ने इस लाभ के लिए याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ताओं ने सीबीएसई की इस अधिसूचना को चुनौती देते हुए कहा कि इससे संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकार का हनन होता है।
संविधान के 103वें संशोधन कानून के तहत समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के सदस्यों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया है जो पहले से ही चल रही आरक्षण नीति के अतिरिक्त है।