भोपाल। कमलनाथ सरकार अब धीरे से वर्ष 2003 के दिग्विजय सिंह वाले दलित एजेंडा का प्रमुख फैसला लागू करने की तैयारी तेज हो गई है। इसके तहत मध्यप्रदेश में होने वाली सरकारी खरीदी में अनुसूचित जाति- जनजाति वर्ग के उद्यमी और इकाई से 30 प्रतिशत खरीदारी अनिवार्य की जाएगी। इसका प्रस्ताव सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विभाग ने वित्त विभाग को अभिमत के लिए भेज दिया है। वित्त से सहमति मिलने के बाद इसे अंतिम निर्णय के लिए कैबिनेट में रखा जाएगा। सूत्रों के मुताबिक दिग्विजय सरकार ने प्रदेश में अनुसूचित जाति-जनजाति के युवा और उद्यमियों को बढ़ावा देने के लिए सरकारी खरीदी में 30 फीसदी कोटा तय किया था।
भाजपा सरकार आने के बाद दलित एजेंडे के इस महत्वपूर्ण बिंदु को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। 2015 में भंडार क्रय नियम में संशोधन करके इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया। विधानसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस ने वचन पत्र में इस मुद्दे को शामिल किया था। परिणाम आने के बाद सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विभाग ने इसकी तैयारी शुरू कर दी थी।
बताया जा रहा है कि विभाग ने लघु उद्योग निगम सहित अन्य माध्यमों से सरकारी विभागों में होने वाली खरीदी में अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के युवा और इकाईयों से तीस प्रतिशत खरीदी के निर्णय को फिर से लागू करना प्रस्तावित कर दिया है। वित्त विभाग से इस पर राय ली जा रही है। विभाग के प्रमुख सचिव केसी गुप्ता ने वित्त विभाग को अभिमत के लिए प्रस्ताव भेजने की पुष्टि की है।
केंद्र सरकार ने पांच फीसदी कोटा दिया है
तत्कालीन प्रदेश सरकार ने भले ही अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के युवाओं को मौका देने के लिए खरीदी में 30 प्रतिशत कोटा देने का प्रावधान खत्म कर दिया हो पर केंद्र सरकार ने इसे लागू कर दिया है। इसके तहत भारत हैवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड (भेल) सहित अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम में अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग से पांच फीसदी खरीदी का कोटा रखा गया है। प्रदेश में इसकी लंबे समय से मांग भी उठ रही थी।
हर साल होती है करोड़ों की खरीदी
प्रदेश में हर विभाग करोड़ों रुपए की खरीदी लघु उद्योग निगम, जैम ऑनलाइन पोर्टल सहित अन्य माध्यम से करते हैं। इसमें टेबल, कुर्सी, स्टेशनरी सहित अन्य सामग्री शामिल हैं। भंडार क्रय नियम में संशोधन होने के बाद तीस प्रतिशत खरीदी अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग की इकाई या उद्यमियों से अनिवार्य रूप से करनी होगी।