नई दिल्ली। डिजिटल इंडिया में क्या आप किसी ऐसे बैंक की कल्पना कर सकते हैं जो खाते में जमा हुए चेक के निस्तारण में 3 महीने का समय लगा दे और आपत्ति उठाने पर खाताधारक के साथ ठेस पहुंचाने वाला व्यवहार करे। हरियाणा के कुरुक्षेत्र में CANARA BANK ने कुछ ऐसा ही किया। उपभोक्ता ने अपने खाते में चेक लगाया था। बैंक ने 3 महीने बाद बताया कि चेक प्रदाता के खाते में रकम नहीं है। खाताधारक ने 3 महीने की लम्बी अवधि पर आपत्ति जताई तो बैंक ने माफी मांगने के बजाए कुतर्क किए। नतीजा उपभोक्ता फोरम ने ना केवल बैंक को दोषी घोषित किया बल्कि चेक में दर्ज रकम अदा करने का भी आदेश दिया।
एडवोकेट विशाल मदान ने बताया बाबैन के बरगट निवासी किरणपाल का केनरा बैंक बाबैन में बचत खाता है। उसे 27 अप्रैल 2017 में किसी परिचित ने डेढ़ लाख का चेक दिया था। जिसे उसने केनरा बैंक की बाबैन शाखा में अपने खाते में उसी दिन कैश करने को लेकर जमा करवा दिया था। तीन माह से अधिक समय बीतने पर एक अगस्त 2017 को बैंक ने उपभोक्ता द्वारा खाते में लगाया गया डेढ़ लाख का चेक यह कहकर लौटा दिया कि जिस खाते का यह चेक है, उसमें पर्याप्त पैसा नहीं है।
शिकायतकर्ता ने तीन माह बाद बैंक की ओर से यह बताने पर एतराज जताया। बैंक के अधिकारी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं थे। बैंक अधिकारियों ने खाताधारक को ठेस पहुंचाने वाला व्यवहार किया। जिसपर उसने उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया। मामले में दोनों पक्षों को सुनने व सबूतों के आधार पर उपभोक्ता फोरम की चेयरपर्सन नीलम कश्यप, सदस्य सुनील मोहन त्रिखा व नीलम ने बैंक उपभोक्ता को डेढ़ लाख की राशि के साथ दस हजार रुपए कंपनसेशन के देने के निर्देश दिए। 45 दिन में यह राशि उपभोक्ता को न देने पर इसके बाद जितनी देरी होगी 9 फीसदी ब्याज के हिसाब से उपभोक्ता को पैसा लौटाना होगा।