भोपाल। मोदी सरकार (Modi Government) की अफसरों को घर भेजने की कार्रवाई पर अंकुश नहीं लगा है, तमाम विरोध के बावजूद सरकार अब कुछ और आला अफसरों को घर भेजने की तैयारी है, यदि ऐसा ही चला तो जल्दी एक और अफसरों की घर भेजने की सूची सामने आएगी | केंद्र सरकार ने हाल ही में आयकर विभाग (Income tax department) के 12 भ्रष्ट अधिकारियों (Corrupt officials) को जबरन सेवानिवृत करने का निर्णय ( decision to retire) लिया है| वरिष्ठ और अहम पदों पर बैठे भारतीय राजस्व सेवा के इन दंडित अधिकारियों पर रिश्वतखोरी, उगाही, यौन शोषण जैसे गंभीर आरोप हैं| आगामी सूची में भारतीय विदेश सेवा, प्रशासनिक सेवा और पुलिस सेवा के अधिकारी हो सकते हैं | सरकार की समग्र कवायद को समाज के एक तबके से समर्थन मिल रहा है तो नौकरशाही इसे लेकर ट्रिब्यूनल और अदालत की राह भी खोज रही है |
देश के वर्तमान ढाँचे में भारत संघ के अंतर्गत कार्यरत सभी सेवाओं का अपना महत्व और जिम्मेदारी है| संघ की सभी सेवाएं राज्यों के लिए उत्कृष्टता की मिसाल बने, इसलिए उनका निष्पक्ष ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ होना चाहिए | जहाँ तक आयकर विभाग आर्थिक और वित्तीय संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, मेहनत और ईमानदारी से अर्जित आय पर कर का भुगतान करनेवाले करदाताओं के बरक्स एक श्रेणी ऐसे लोगों की भी है, जो भ्रष्ट अधिकारियों से सांठ-गांठ कर करोड़ों रुपये की कर चोरी करते हैं, अन्य सेवाओं में भी ऐसी सांठ-गांठ राजनीति के प्रश्रय में समूचे देश में चलती हैं |
अपराध ,विशेष कर आर्थिक पिछले दशक में ज्यादा उजागर हुए हैं| दूसरी ओर वित्तीय लेन-देन और कराधान की प्रक्रिया को सुगम, सक्षम और पारदर्शी बनाने के लिए हाल के वर्षों में सरकार द्वारा अनेक पहलें हुई हैं. लेकिन, प्रशासनिक तंत्र में अगर भ्रष्टाचार और कदाचार के माहौल के कारण वांछित परिणाम नहीं मिले | इसके पीछे कथित अपराधियों के साथ नौकरशाही के मजूबत गठ्बन्धन की जानकारी सरकार और समाज को थी | सरकार की पहलकदमी बेअसर हो सकती थी | ऐसे में केंद्र सरकार ने संकेत दे दिया है कि न तो भ्रष्टाचार को बर्दाश्त किया जायेगा और न ही भ्रष्ट अधिकारियों को बख्शा जायेगा| घर वापिसी के अतिरिक्त केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा मामले दर्ज कराये गये | 2015 से 2018 के बीच केंद्र सरकार ने 23 मामलों में कथित आरोपी 17 भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति भी दी |भ्रष्टाचार के आरोपी भारतीय पुलिस सेवा तथा भारतीय वन सेवा के कई अधिकारियों के साथ भी सरकार सख्ती से पेश जरुर आई है | इसके विपरीत सच तो यह है कि नौकरशाही में भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी हैं, जिससे निपटना आसान नहीं है| सरकार को कार्रवाई करने में ज्यादा मुस्तैदी दिखाने की जरूरत है| केंद्रीय जांच ब्यूरो आधे से भी कम मामलों में सालभर के भीतर अभियोग पत्र दाखिल कर पाता है|
दूसरी स्थिति कानूनी पचड़ों में मामले लटके रहते हैं और इधर दागी अधिकारी पदों पर भी जमे रहते हैं| केंद्रीय सतर्कता आयोग भ्रष्टाचार के आरोपी 123 सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई के लिए सरकार की हरी झंडी का इंतजार कर रहा है| नियमों के मुताबिक, चार महीने के भीतर सरकार के संबद्ध विभागों को मंजूरी पर फैसला कर लेना चाहिए. इन अधिकारियों में प्रशासनिक सेवा में कार्यरत लोगों के अलावा केंद्रीय जांच ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कर्मचारी हैं|
भारत के पहले लोकपाल के रूप में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश पिनाकी चंद्र घोष की नियुक्ति के बाद से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की उम्मीदों को बल मिला, परंतु चार महीने बीत जाने के बाद भी इस संस्था में शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया का निर्धारण नहीं हो सका है| सेवा से हटाने जैसे कड़े फैसलों के साथ मामलों के निपटारे की व्यवस्था को भी दुरुस्त किया जाना चाहिए| यह कदम बहुत जरूरी होगा और भय का संचार करेगा | इसी भय में राष्ट्रहित छिपा है |
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करें) या फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए