क्या भारत ये अवसर खो रहा है ? | EDITORIAL by Rakesh Dubey

Bhopal Samachar
हाल ही में जारी एक सरकारी रोजगार सर्वेक्षण से पता चला है कि श्रमिक उम्र [१५ से ६५ वर्ष] के लोगों में से केवल आधे ही काम कर रहे हैं। २००४-०५ में यह आंकड़ा ६४  प्रतिशत था। जहां तक शिक्षा और कौशल की बात है, शिक्षा सर्वेक्षण तथा कौशल विकास कार्यक्रमों की धीमी प्रगति अपनी दुखद कथा कहती है। एक समय ऐसा भी आता है जब आबादी में बहुत तेजी से बढ़ोतरी होती है। आबादी में विभिन्न उम्र के लोगों की तादाद भी इसी हिसाब से बदलती है। श्रमिक उम्र (15 वर्ष से 65 वर्ष) के लोगों की तादाद बढ़ती है, उच्चतम स्तर पर पहुंचती है और फिर उसमें गिरावट आती है।

अगर आबादी का बड़ा प्रतिशत श्रमिक उम्र का होता है तो अर्थव्यवस्था में आय, बचत और उत्पादकता बढ़ती है। इसके अलावा भी अन्य कई लाभ होते हैं। जो देश बदलाव के इस दौर का सफलतापूर्वक इस्तेमाल करते हैं उन्हें आर्थिक तेजी का लाभ मिलता है। पूर्वी एशिया के देशों ने बीती सदी के उत्तराद्र्ध में जो तेज वृद्धि हासिल २५ प्रतिशत से लेकर ४० प्रतिशत तक हिस्सा इसी जनांकीय लाभ से हासिल हुआ।  जनांकीय बदलाव का आकलन निर्भरता अनुपात के आधार पर किया जाता है। यानी श्रम शक्ति से बाहर के लोगों (युवा एवं बुजुर्ग) के कामगार उम्र के लोगों के प्रतिशत के रूप में। सन १९८०  में भारत में यह अनुपात करीब ७५ प्रतिशत था जो कि सन १९६०  के बराबर ही था। इस अवधि को धीमी,वृद्धि दर कहा गया। इसके बाद आर्थिक वृद्धि दर में इजाफा होने लगा और उस अनुपात या प्रतिशत में गिरावट आने लगी। निर्भरता अनुपात में सन १९९०  के मध्य से एक बार फिर गिरावट आने लगी और एक दशक में यह ७० प्रतिशत से घटकर ६० प्रतिशत रह गया। बाद के दशक में इसमें और गिरावट आई और यह ५० प्रतिशत  रह गया। यह केवल संयोग नहीं हो सकता कि यही वे वर्ष थे जब भारत की आर्थिक वृद्धि में सबसे तेज इजाफा हुआ।

कुछ अनुमान बताते हैं कि देश का निर्भरता अनुपात अगले दो दशक तक स्थिर रहेगा और उसके बाद ही इसमें इजाफा शुरू होगा। यह दायरा चीन समेत तमाम पूर्वी एशियाई देशों के दायरों से अलग है। ये देश अपने निर्भरता अनुपात को कम करने में सफल रहे और बदलाव के पहले वे इसे ४० प्रतिशत या उससे कम पर ले आए। भारत ऐसा प्रबंधन नहीं कर पाएगा क्योंकि हमारी जन्म दर तेजी से नहीं घट रही। यह स्वास्थ्य एवं पोषण नीति की विफलता है। इसके कारण हमें ८ से १० प्रतिशत की वह वृद्धि दर हासिल करने में समस्या आ सकती है जो कुछ पूर्वी एशियाई देशों ने हासिल की है।

यह सवाल पूछना होगा कि क्या भारत संभावित जनांकीय लाभांश का कुछ हिस्सा गंवाने वाला है? अगर ऐसा होता है तो इसकी दो वजह होंगी: जनांकीय लाभांश का पूरा लाभ तभी उठाया जा सकता है जबकि कामगार उम्र के लोग वाकई काम कर रहे हों। दूसरा, क्या काम करने वालों के पास उचित शिक्षा और कौशल है, जो कार्यस्थल पर उन्हें अधिक उत्पादक बनाता है। हम सभी जानते हैं कि हमारा देश इन मानकों पर पीछे रहा है। सरकार द्वारा हाल ही में जारी एक रोजगार सर्वेक्षण से पता चला है कि श्रमिक उम्र के लोगों में से केवल आधे ही काम कर रहे हैं। २००४-५ में यह आंकड़ा ६४ प्रतिशत था। जहां तक शिक्षा और कौशल की बात है| हमारे पास अभी भी यह अवसर है कि हम स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के मोर्चे पर हाथ लगी नाकामी को दूर कर सकें और जनांकीय लाभांश का फायदा उठा सकें।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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