काश्मीर से जम्मू और लद्दाख को अलहदा रखने के घाटी के नेताओं के मंसूबे सामने आने लगे हैं | जम्मू-काश्मीर विधानसभा चुनाव के पहले परिसीमन को लेकर घाटी के नेता बेचैन हैं | इसके विपरीत भाजपा और कांग्रेस के साथ लद्दाख और जम्मू में राजनीति कर रहे अन्य दल केंद्र सरकार के समर्थन में हैं | सवाल यह है कि घाटी के नेता क्यों बवाल मचा रहे हैं ? भारत के इस प्रान्त में आखिरी बार १९९५ में परिसीमन किया गया था, जब राज्यपाल जगमोहन के आदेश पर जम्मू-काश्मीर में ८७ विधानसभा सीटों का गठन किया गया। अभी जम्मू-काश्मीर विधानसभा में कुल १११ सीटें हैं, जिनमें से २४ सीटों को रिक्त रखा गया है। जम्मू-कश्मीर के संविधान की धारा ४७ के अनुसार इन २४ सीटों को पाक अधिकृत कश्मीर के लिए खाली छोड़ा जाता है और शेष ८७ सीटों पर ही चुनाव होता है। सब जानते हैं कि जम्मू-कश्मीर का अलग से भी संविधान है।घाटी के नेताओं का हमेशा दबाव रहा है कि घाटी में सर्वाधिक सीट रखना, उन पर चुनाव लड़ना जिससे सरकार बनाना उनके लिए आसान है | इस लालच के चलते वहां के दोनों दल एक हो जाते हैं | सरकार में या तो मुफ़्ती परिवार रहता है या अब्दुल्ल्ला परिवार |
वैसे जम्मू-कश्मीर में सीटों का परिसीमन २००५ में किया जाना था, लेकिन न्यस्त स्वार्थवश फारुक अब्दुल्ला सरकार ने २००२ में इस पर २०२६ तक के लिए रोक लगा दी थी। अब्दुल्ला सरकार ने जम्मू-कश्मीर जनप्रतिनिधित्व कानून, १९५७ और जम्मू-कश्मीर के संविधान में बदलाव करते हुए यह फैसला लिया था। अलग संविधान होंने से यही कष्ट हमेशा रहा है | २०११ की जनगणना के मुताबिक प्रान्त के जम्मू संभाग की आबादी ५३ ७८ ५३८ है और यह प्रांत की ४२.८९ प्रतिशत आबादी है। जम्मू संभाग की कुल आबादी में डोगरा समुदाय की आबादी ६२.५५ प्रतिशत है। प्रांत का २५.९३ प्रतिशत क्षेत्रफल जम्मू संभाग के अंतर्गत आता है और विधानसभा की कुल ३७ विधायक यहां से चुने जाते है। दूसरी तरफ, कश्मीर घाटी की आबादी ६८ ८८ ४७५ है और यह प्रान्त की आबादी का ५४.९३ प्रतिशत हिस्सा है। कश्मीर घाटी की कुल आबादी में ९६.४ प्रतिशत मुस्लिम हैं। कश्मीर संभाग का क्षेत्रफल राज्य के क्षेत्रफल का १५.७३ प्रतिशत है और यहां से कुल ४६ विधायक चुने जाते हैं। इसके अलावा राज्य के ५८.३३ प्रतिशत क्षेत्रफल वाले लद्दाख संभाग से 4 विधायक चुने जाते हैं। लद्दाख क्षेत्र की आबादी महज २ ७४ २८९ है। इसमें ४६.४० प्रतिशत मुस्लिम, १२.११ प्रतिशत हिंदू और ३९.६७ प्रतिशत बौद्ध हैं।
केंद्र सरकार यहां इसलिए परिसीमन पर जोर दे रही है ताकि एससी और एसटी समुदाय के लिए सीटों के आरक्षण की नई व्यवस्था लागू की जा सके। घाटी की किसी भी सीट पर आरक्षण नहीं है, लेकिन यहां ११ प्रतिशत गुर्जर बकरवाल और गद्दी जनजाति समुदाय के लोगों की आबादी है। जम्मू संभाग में ७ सीटें एससी के लिए रिजर्व हैं, इनका भी रोटेशन नहीं हुआ है। ऐसे में नए सिरे से परिसीमन से सामाजिक समीकरणों पर भी प्रभाव पड़ने की संभावना है।
कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर में परिसीमन प्रक्रिया का समर्थन किया है और कहा कि इस प्रक्रिया को कम से कम समय में पूरा किया जाना चाहिए. जम्मू-कश्मीर कांग्रेस की यह टिप्पणी उन खबरों के बाद आई है, जिनमें कहा गया है कि केंद्र सरकार विधानसभा क्षेत्रों का दायरे और आकार के पुन र्निर्धारण और अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या निर्धारित करने के लिए परिसीमन आयोग गठित करने पर विचार कर रही है |जम्मू - कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने कहा, "पार्टी राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले समयबद्ध तरीके से जल्द से जल्द परिसीमन के पक्ष में है."
इन हालातों में आबादी, क्षेत्र, इलाके और इस तरह के अन्य मानकों पर विचार करके प्रत्येक क्षेत्र के साथ पूर्ण न्याय सुनिश्चित किया जाना हितकारी होगा | जितना जल्दी हो सके यहां के अलग संविधान और झंडा खत्म करने आवश्यकता है । यही मूल कारण है इसके बाद ही यहां की जनता मुख्य धारा से जुड़ेगी ।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।