हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी यानी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी (HEALTH INSURANCE POLICY) हर किसी व्यक्ति के लिए अच्छी बात है। प्रीमियम राशि (PREMIUM AMOUNT) कम करने के चक्कर में बीमित राशि (SUM INSURED) कम कर लेना समझदारी नहीं है परंतु बहुत ज्यादा प्रीमियम वाली पॉलसी लेना भी अक्लमंदी नहीं कही जाती। वित्तीय विशेषज्ञों (FINANCIAL ADVISORY) का कहना है कि ऐसी स्थिति में उस पॉलिसी को बंद कर देना ही समझदारी भरा फैसला होता है।
हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी का प्रीमियम कितना होना चाहिए
स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी का प्रीमियम सम इंश्योर्ड का 10 फीसदी से कम होना अच्छा माना जाता है। बीमा विशेषज्ञों के मुताबिक अगर आपकी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी का प्रमियम सम इंश्योर्ड का 20 फीसदी या इससे अधिक है तो सावधान हो जाना चाहिए। विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसी पॉलिसी को जारी रखने की बजाय उसे बंद करा देने में ही फायदा है। आप यदि वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी में हैं और आपने तीन लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा खरीदा है जिसका प्रीमियम बढ़कर 50 हजार रुपये हो गया है तो इसे बंद कराने में ही समझदारी है।
पॉलिसी में खर्च की शर्त भी देखें
बीमा कंपनियां पॉलिसी में इलाज पर हुए एक खर्च का हिस्सा उपभोक्ता से भी लेने की शर्त रखती हैं। इसका अनुपात अलग-अलग होता है। यदि आपने तीन लाख की पॉलिसी ली है जिसमें 20 फीसदी आपसे लेने की शर्त है तो इसका मतलब हुआ कि इलाज पर दो लाख रुपये खर्च आने पर 40 हजार रुपये आपको अपनी जेब से खर्च करने पड़ेंगे। इसमें 50 हजार रुपये प्रीमियम को जोड़ दें तो यह राशि 90 हजार रुपये बैठती है। इस तरह आपको करीब 50% राशि अपने जेब से खर्च करनी पड़ेगी। बीमा विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी स्थिति में पॉलिसी बंद कर दें।
कमरे का पूरा किराया नहीं देती कंपनी
स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी में कंपनियां अस्पताल के कमरे का किराया बीमित राशि से तय करती हैं जो सामान्यत: बीमित राशि का एक फीसदी होता है। हालांकि, पॉलिसी और कंपनी के आधार पर इनमें अंतर हो सकता है। बीमा विशेषज्ञों का कहना है कि यदि आपकी पॉलिसी चार लाख रुपये की है और अस्पताल के कमरे का किराया छह हजार रुपये है तो ऐसे में बीमा कंपनी अस्पताल के कमरे का चार हजार रुपये ही किराया देगी। इसमें बाकी राशि आपको अपनी जेब से खर्च करने पड़ेंगे। साथ ही कई पॉलिसी में दवा और अन्य तरह के खर्च भी शामिल नहीं होते हैं।