भोपाल। कांतिलाल भूरिया जो दिन देख रहे हैं, शायद उनकी राजनीति के सबसे बुरे दिन हैं। आदिवासियों की राजनीति। कांग्रेस में महत्व, केंद्रीय मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष पद तक पहुंचे। मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी रहे परंतु अब हालात यह हैं कि वो खुद कांग्रेस में अपने लिए किसी कुर्सी की कल्पना नहीं कर सकते। इधर झाबुआ का उपचुनाव आ रहा है। अब देखना यह है कि कांग्रेस हाईकमान क्या करेगा। क्या वापस भूरिया पर भरोसा जताया जाएगा या नए आदिवासी चेहरे की तलाश शुरू हो चुकी है ?
विधानसभा चुनाव में बेटा हारा
कांतिलाल भूरिया ने विधानसभा चुनाव में अपने बेटे विक्रांत भूरिया को मैदान में उतारा। भाजपा यहां अपना सबसे दिग्गज आदिवासी नेता दिलीप सिंह भूरिया को खो चुकी है। पार्टी ने यहां से विक्रांत के सामने जीएस डामोर को उतारा। पूरे प्रदेश में कर्जमाफी के वचन की लहर चल रही थी और फिर झाबुआ सीट तो कांतिलाल भूरिया का गढ़ थी। बावजूद इसके विक्रांत भूरिया चुनाव हार गए। यह बहुत शर्मसार करने वाला जनादेश था।
लोकसभा में खुद उतरे और चित हो गए
विधानसभा चुनाव की बातें खत्म नहीं हुईं थीं कि लोकसभा चुनाव आ गए। रतलाम झाबुआ संसदीय सीट से खुद कांतिलाल भूरिया मैदान में उतरे। दिलीप सिंह भूरिया के स्वर्गवास के बाद भाजपा के पास कोई नेता ही नहीं था। कहा यह भी जाता है कि कांतिलाल भूरिया और शिवराज सिंह में दोस्ती काफी गहरी है, सो भाजपा ने विधायक जीएस डामोर को लोकसभा का टिकट थमा दिया। रेड कार्पेट पर चर्चा थी कि यह टोकन फाइट है लेकिन क्षेत्र की जनता ने एक बार फिर जनादेश दिया कि उन्हे कांतिलाल भूरिया भी पसंद नहीं है। कांतिलाल भूरिया को शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा।
भूरिया का भविष्य क्या है
कांतिलाल भूरिया मध्यप्रदेश के बड़े आदिवासी नेता हुआ करते थे परंतु अब आदिवासियों में उनकी पकड़ नहीं रह गई है। आदिवासियों के कई संगठन भी बन गए हैं जो कांतिलाल भूरिया का खुला विरोध करते हैं। हालांकि कांतिलाल भूरिया के कुछ कनेक्शन काफी मजबूत हैं परंतु इस शर्मनाक हार के बाद वो कनेक्शन भी करंट दे पाएंगे, फिलहाल तो संभव नहीं लगता।