नई दिल्ली। महाराष्ट्र के नांदेड़ के फेमिली कोर्ट का कहना है कि संतान को जन्म देना (PREGNANCY AND DELIVERY FOR A CHILD) किसी भी महिला का मौलिक नागरिक अधिकार (FUNDAMENTAL RIGHT OF A WOMAN) है। इसी के चलते कोर्ट ने पति को आदेशित किया है कि वो महिला को बच्चा पैदा करने में मदद करे, नहीं तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है। बता दें कि पति अब महिला के साथ नहीं रहता। उसने तलाक के लिए याचिका लगाई है।
टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात का उल्लेख किया है कि बच्चे पैदा करने के लिए पति की सहमति जरूरी है। ऑर्डर के मुताबिक, प्रतिवादी असिस्टेड रिप्रॉडक्टिव टेक्नोलॉजी के तहत बच्चे पैदा करने के लिए सहमति देने से मना कर सकता है। लेकिन अनुचित तरीके से इनकार करने पर आगे कानूनी नतीजों का सामना करना पड़ सकता है।
असल में अलग रह रहे पति ने 2017 में कोर्ट में तलाक के लिए याचिका दायर की थी। वहीं, महिला ने साथ रहने के लिए आवेदन दिया था। दोनों ही मामलों में याचिका लंबित है। इसी बीच महिला ने अपनी बढ़ती उम्र का हवाला देते हुए दूसरा बच्चा पैदा करने के लिए याचिका दायर कर दी। पति ने महिला के बच्चे पैदा करने की मांग को गलत और गैरकानूनी बताते हुए विरोध किया लेकिन कोर्ट ने महिला की मांग को स्वीकार करते हुए आईवीएफ से बच्चे पैदा करने पर डॉक्टर से रिपोर्ट देने को कहा।
फेमिली कोर्ट की जज स्वाति चौहान ने महिला के पक्ष में फैसला दिया। पहले से कपल का एक बच्चा है जो मां संग रहता है। मां ने कोर्ट में कहा था कि वह उसके लिए भाई या बहन चाहती है। उनकी उम्र 35 वर्ष हो चुकी है और उनके फर्टाइल बने रहने का समय कम बचा है।