अधिकारियों को हाईकोर्ट में जवाब देने सिर्फ 2 मौके मिलेंगे: आदेश जारी | MP NEWS

Bhopal Samachar
भोपाल। सरकारी विभागों के एक लाख से ज्यादा मामले हाईकोर्ट में विचाराधीन हैं। रोजाना कोई न कोई नया प्रकरण हाईकोर्ट पहुंच रहा है। वहीं पुराने प्रकरणों में विभागीय अफसर समय रहते जवाब नहीं देते, जिसके कारण कोर्ट में प्रकरण लंबे समय तक चलते हैं। इस बात को गंभीरता से लेते हुए शासन ने जवाब या रिजाइण्डर दर्ज कराने के लिए सिर्फ दो अवसर देने का निर्णय लिया है। अब सरकारी विभागों के अफसरों को अपने जवाब प्रस्तुत करने वाले समय का ध्यान रखना होगा। क्योंकि उन्हें हाईकोर्ट में 15-15 दिन का ही समय मिलेगा।

यह आदेश जारी हुआ 

सामान्य प्रशासन विभाग ने 12 जून को आदेश जारी किया है। जिसमें शासन के समस्त विभागों,कमिश्नर और कलेक्टरों से कहा गया है कि हाईकोर्ट में जवाब प्रस्तुत करने के अवसरों को अब सीमित किया जा रहा है। संशोधित नियमों में अब सभी विभागों को अपने प्रकरणों में जवाब प्रस्तुत करने, रिजाइण्डर प्रस्तुत करने और डिफाल्ट दूर करने के लिए प्रिंसिपल रजिस्ट्रार हाईकोर्ट द्वारा केवल दो बार 15-15 दिन की मोहलत मिलेगी। इसके बाद जवाब प्रस्तुत करने का अवसर समाप्त माना जाएगा। अभी तक विभागों द्वारा जवाब प्रस्तुत करने में देरी की जाती रही है। जिसके कारण कोर्ट में समय रहते सरकार का पक्ष प्रस्तुत नहीं हो पाता था।

अफसर खुद करेंगे मॉनिटरिंग

जिला स्तर पर जिन विभागों के प्रकरणों में जवाब पेश किया जाना है। उसके लिए नोडल अधिकारियों, प्रभारी अधिकारी को सुनवाई से पहले जवाब तैयार कराने होंगे। इसके लिए हाईकोर्ट ने भी शासन को सुविधा प्रदान की है। विभागीय अफसर या कमेटी अपने प्रकरणों को ऑनलाइन देख सकते हैं। जिससे उन्हें पता चल जाता है कि किस प्रकरण में किस तारीख तक जवाब प्रस्तुत करना है।

इसके अलावा प्रकरण में कौन प्रभारी अधिकारी या नोडल अधिकारी तैनात किया गया है। उसका मोबाइल नंबर, ई मेल एड्रेस के साथ उस न्यायालय की संबंधित कोर्ट के अनुसार जबलपुर, इंदौर और ग्वालियर स्थित संयुक्त आयुक्त लिटिगेशन एवं समन्वय के दफ्तर भेजने के निर्देश मिले हैं।

डेड़ लाख प्रकरण लगे

- हाईकोर्ट में एक से डेढ़ लाख के बीच सरकारी विभागों के प्रकरण चल रहे हैं।
- रोजाना नए प्रकरणों की संख्या ही 100 से ज्यादा दर्ज होने लगी है।
- इनमें सभी प्रकरणों में जवाब या रिजाइण्डर प्रस्तुत नहीं करना होता है लेकिन उन प्रकरणों में जवाब देर से प्रस्तुत होने पर निर्णय में देरी होती है।

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