जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कहा कि नर्मदा नदी के किनारे 300 मीटर तक प्रतिबंधित क्षेत्र का निर्धारण तट से नहीं, बल्कि पूर्ण बाढ़ स्तर की रेखा से किया जाए। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश आरएस झा व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने तिलवारा घाट में दयोदय ट्रस्ट द्वारा किए जा रहे निर्माण के संबंध में सरकार की रिपोर्ट को नकार दिया।
कोर्ट ने कहा कि निर्देशानुसार निर्धारण कर पूरी नर्मदा के किनारे प्रतिबंधित क्षेत्र में हुए निर्माणों की रिपोर्ट दो सप्ताह के अंदर पेश की जाए। इनके खिलाफ अब तक की गई कार्रवाई का ब्यौरा भी कोर्ट ने मांगा। नर्मदा मिशन के नीलेश रावल व अन्य ने जनहित याचिका दायर कर कहा कि नर्मदा नदी के 300 मीटर दायरे तक प्रतिबंधित जोन होता है। सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के दिशा-निर्देशों के तहत नदी के 300 मीटर के दायरे में किसी भी प्रकार का निर्माण व खनन नहीं किया जा सकता। लेकिन तिलवारा घाट के आसपास ऐसा हो रहा है। दयोदय पशु संवर्धन केन्द्र व गोशाला के संचालक तिलवारा क्षेत्र में नर्मदा नदी के 300 मीटर के दायरे में अवैध खनन व भवन निर्माण कर रहे हैं।
सही तरीके से नहीं किया माप निर्धारणः
गत 6 जून को हुई सुनवाई में गोरखपुर तहसीलदार ने रिपोर्ट पेश कर बताया था कि जांच के मुताबिक प्रतिबंधित दायरे में केवल एक कच्चा रास्ता व कुछ पत्थर हैं। कोई निर्माण या खनन नहीं हो रहा है। मंदिर, आधारशिला व अन्य निर्माण भूमिस्वामी की जमीन में हो रहे हैं व प्रतिबंधित दायरे से बाहर हैं। शुक्रवार को रिपोर्ट के अवलोकन के बाद कोर्ट ने कहा कि नदी के तट से ही यह निर्धारण कर दिया गया। जबकि नदी के पूर्ण बाढ़ स्तर की रेखा से तीन सौ मीटर के प्रतिबंधित दायरे का निर्धारण किया जाना चाहिए था।
सबकी दो रिपोर्ट, क्या कार्रवाई की यह भी बताओः
राज्य सरकार को निर्देश दिए गए कि न केवल अनावेदक, बल्कि पूरी नदी के किनारे उक्तानुसार निर्धारित प्रतिबंधित क्षेत्र में हुए निर्माणों के संबंध में रिपोर्ट पेश की जाए। यह भी बताया जाए कि अब तक इनके खिलाफ क्या कदम उठाए गए। याचिकाकर्ता का पक्ष अधिवक्ता सौरभ तिवारी, दयोदय ट्रस्ट का पक्ष अधिवक्ता दयाराम विश्वकर्मा, विपुलवर्धन जैन, नगर निगम की ओर से अधिवक्ता अनुज श्रीवास्तव व सरकार का पक्ष शासकीय अधिवक्ता भूपेश तिवारी ने रखा।