श्रावण मास यानी प्रकृति के सानिध्य का मास और देवाधिदेव महादेव की आराधना का मास। इस मास में प्रकृति अपनी मनमोहक छटा के सतरंगी रंग चारों और बिखेरती है। भोलेनाथ प्रकृति के देव माने जाते हैं। कैलाश पर्वत पर बसेरा, मृगछाल की पोशाख, नागों के आभूषण, और भस्म का श्रंगार धारण कर बाबा बैरागी, भक्तों को सुख, समृद्धि, धन और एश्वर्य का आशीर्वाद देते हैं।
क्या चीजें अर्पित की जातीं हैं
भोलेनाथ को वैसे तो भांग,धतूरा, बिल्वपत्र और सात्विकता के प्रतीक श्वेत पुष्पों को चढ़ाने का विधान है। साथ ही उनको ऋतुफल, मिष्ठान्न, वस्त्र समर्पित किए जाते हैं, लेकिन शिव को वैराग्य और बुराइयों के संहार का देवता माना जाता है। इसलिए सांसरिक जीवन में प्रचलित कुछ वस्तुओं को शिवलिंग पर चढ़ाने का शास्त्रों में निषेध बताया गया है।
शिव पूजा में केतकी के फूल वर्जित हैं
शिव को केतकी के फूल समर्पित नहीं किए जाते हैं। केतकी के फूल को शिवजी ने श्राप दिया था इसलिए शिवपूजा में केतकी के फूल का निषेध है। ब्रह्मा और विष्णु की श्रेष्ठता के युद्ध में केतकी के फूल ने ब्रह्माजी का साथ देकर झूठ बोला था कि ब्रह्माजी शिवलिंग के छोर का पता लगाने में कामयाब रहे। इस झूठ पर महादेव ने ब्रह्मा जी का एक सिर काट दिया था और उनको श्राप दिया था कि उनकी कभी पूजा नहीं होगी। ब्रह्माजी का वो कटा सिर केतकी के फूल में बदल गया। भगवान शिव ने केतकी के फूल को भी श्राप देकर कहा कि उनके शिवलिंग पर कभी केतकी के फूल को अर्पित नहीं किया जाएगा।
शिव पूजा में तुलसी के पत्ते वर्जित हैं
महादेव को तुलसीपत्र भी समर्पित नहीं किए जाते हैं। शिवपुराण की एक कथा के अनुसार असुर जालंधर की पत्नी तुलसी के मजबूत पतिधर्म के कारण से उसको कोई भी देव हराने में सक्षम नहीं था। इसलिए भगवान विष्णु ने असुर जालंधर का वेष धारण तुलसी का पतिधर्म खंडित किया था और महादेव ने असुर जालंधर का वध कर उसको भस्म कर दिया था। इस बात से तुलसी को सदमा लगा और उसने शिव को अपने अलौकिक, दैवीय और औषधीय गुणों वाले पत्तों से वंचित कर दिया।
शिव पूजा में हल्दी वर्जित है
हल्दी का सामान्यत: प्रयोग रूप निखारने और सौंदर्य को बढ़ाने के लिए किया जाता है। भोलेनाथ भस्म रमाने वाले और मृगछाल धारण करने वाले हैं इसलिए शिवलिंग पर हल्दी चढ़ाने का निषेध है, लेकिन शिवलिंग की वेदी पर हल्दी समर्पित की जा सकती है।
शिव पूजा में कुमकुम या सिंदूर वर्जित है
इसी तरह कुमकुम या सिंदूर को सुहाग और सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है। सनातन संस्कृति में महिलाएं इसका सर्वाधिक प्रयोग करती है। अपने पति की लंबी आयु और अपने सुहाग की रक्षा के लिए महिलाएं सिंदूर लगाती है। इसलिए बैरागी शिव को कुमकुम और सिंदूर दोनों समर्पित करने का निषेध बताया गया है।
नारियल का पानी से शिवलिंग का अभिषेक वर्जित है
शिवलिंग को नारियल अर्पित किया जाता है, लेकिन नारियल पानी कभी समर्पित नहीं किया जाता है। मान्यता है कि शिवलिंग पर जिस सामग्री को चढ़ाया जाता है उसको ग्रहण नहीं किया जाता है।इसलिए भी नारियल पानी शिवलिंग पर नहीं चढ़ाया जाता है।
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