गोपाल दास बैरागी/नीमच। नदी की गहराई नाप कर पांच बच्चे औसत लंबाई को आधार बनाकर नदी पार करते समय सबसे छोटे कद वाला बच्चा डूबने लगा तो औसत के आधार पर विचार किया गया कि "जोड़-बाकी ज्यों की त्यों, साथी डूबा क्यों"। गोपालदास बैरागी ने कहा ऐसा ही कुछ मप्र में देखने को मिला।
महिला एवं बाल विकास विभाग में आंगनवाड़ियों में शत प्रतिशत महिला कर्मचारी कार्यरत है इसमें आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका एवं उप आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को 01 अक्टूबर 2018 के पूर्व मिलने वाले मानदेय में वृद्धि की जो 01अक्टूबर 2019 से देय है। मानदेय दो भागों में दिया जाता है जिसमें अतिरिक्त मानदेय शत-प्रतिशत राज्य सरकार द्वारा व मानदेय केंद्र / राज्य 60/40 के अनुपात में भुगतान किया जाता है। दिनांक 01 अक्टूबर 2018 से आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका एवं उप आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को अतिरिक्त मानदेय क्रमशः 7000; 3500 व 3500 के साथ केंद्र/राज्य मानदेय 3000; 1500 व 2250 कुल मिलाकर 10000; 5000 व 5750 प्राप्त हो रहे हैं।
अब संशोधित आदेशानुसार 01 अक्टूबर 2019 से केंद्र सरकार ने मानदेय में वृद्धि करने के निर्णय पर राज्य सरकार ने अपने द्वारा दिये जा रहे शत-प्रतिशत मानदेय में कटौती कर केन्द्रीय बढ़ा हुआ मानदेय समायोजित कर बढ़ोतरी का लाभ कर्मियों को देने के बजाय पूर्वानुसार ही रखा है। राज्य सरकार ने अतिरिक्त मानदेय 7000; 3500 व 3500 को घटाकर 5500; 2750 व 2250 अर्थात 1500; 750 व 500 ₹ प्रतिमाह की कटौती कर, चला आ रहा कुल मानदेय यथावत रखा है।
सरकार ने बड़ी चतुराई से बढ़े हुए मानदेय का लाभ देने के बजाय कटौती कर ली है। पूरे भारत में मप्र ही इकलौता राज्य है जो केन्द्रीय मदद को रोककर महिला कर्मचारियों तक नहीं पहुँचने दे रहा है। इससे इस वर्ग में भारी नाराजगी व्याप्त है। सरकार को चाहिए कि कटौती करने के बजाय केन्द्रीय अंशदान का लाभ महिला कर्मचारियों तक पहुँचने दे, इसमें अवरोध न बने। अल्प वेतनभोगी महिला कर्मचारियों के साथ सरकार की शरारत खुला अन्याय है। इस प्रवृत्ति पर रोक की आवश्यकता है। आधी आबादी के जेब पर राज्य सरकार की हाथ की सफ़ाई अक्षम्य है।