नई दिल्ली। लोकसभा में एन आई ए संशोधन बिल पास कर दिया | इस बिल पर चल रही बहस देख कर लगा की संसद में जिस खौफ की बात की जा रही है या जिसे लेकर खौफ के जुमले उछाले जा रहे हैं | वो झूठ है, जिसे सुनियोजित तरीके से राजनीति, अपनी तरह से फैला रही है | इस झूठ के मुकाबले में मेरे पास सच है | जिन्दा सच वो भी मिसाल के साथ. इस बहस के बाद मुझे लगा कि मेरे बचपन का दोस्त ताहिर अली तो तब मुझसे डरता होगा ? तब नहीं, तो अब तो मुझसे डरता होगा | मन में आया उसी से पूछ लेते हैं | उसका जवाब था जब हम तुम बचपन में इतवारे की गली में रहते थे तब भी वो मुझसे नहीं डरता था | जब नौकरी में उसे अफसरी मिली तब भी पिछले 15 साल मुझसे नहीं डरा | अब रिटायर होने के बाद भी मुझसे नहीं डरता | तो फिर सवाल यह है कि संसद में असद्दुदीन ओवेसी को किससे डर है ? लोकसभा में हुई की बहस का अंश पहले ....!
एनआईए संशोधन विधेयक पर चर्चा के दौरान गृह मंत्री अमित शाह और एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी के बीच नोकझोंक देखने को मिली| ओवैसी ने कहा कि “आप गृह मंत्री हैं तो डराइए मत, जिस पर शाह ने कहा कि वह डरा नहीं रहे हैं, लेकिन अगर डर जेहन में है तो क्या किया जा सकता है|” ‘राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (संशोधन) विधेयक 2019 पर चर्चा में भाग लेते हुए बीजेपी के सत्यपाल सिंह [पूर्व पुलिस महानिदेशक] ने कहा कि हैदराबाद के एक पुलिस प्रमुख को एक नेता ने एक आरोपी के खिलाफ कार्रवाई करने से रोका था और कहा कि वह कार्रवाई आगे बढ़ाते हैं तो उनके लिए मुश्किल हो जाएगी. इस पर एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी अपने स्थान पर खड़े हो गए और कहा कि बीजेपी सदस्य जिस निजी वार्तालाप का उल्लेख कर रहे हैं और जिनकी बात कर रहे हैं वो यहां मौजूद नहीं हैं. क्या बीजेपी सदस्य इसके सबूत सदन के पटल पर रख सकते हैं?
तभी तपाक से गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कहा कि जब द्रमुक सदस्य ए राजा बोल रहे थे तो ओवैसी ने क्यों नहीं टोका? वह बीजेपी के सदस्य को क्यों टोक रहे हैं? अलग अलग मापदंड नहीं होना चाहिए. इस पर ओवैसी ने कहा कि आप गृह मंत्री हैं तो मुझे डराइए मत, मैं डरने वाला नहीं हूं| शाह ने ओवैसी को जवाब देते हुए कहा कि किसी डराया नहीं जा रहा है, लेकिन अगर डर जेहन में है तो क्या किया जा सकता है?
“खौफ” और “इमदाद” दोनों शब्द हकीकत में, जेहन से ही पैदा होते हैं, जिन्हें रवायत [संस्कार] कहा जाता है | अब ताहिर और मैं अपने सफेद बाल रंगते है | बचपन में हमारे बाल धूल से सने होते हैं, जवानी में करीने से कढ़े होते थे तब और अब, हम एक दूसरे से इसलिए नहीं डरते हैं कि हमारे मजहब अलग है | बचपन से हमें खौफ नहीं इमदाद की तालीम मिली है | ताहिर के अब्बा डॉ [प्रो० ] सैयद अशफाक अली भोपाल के अदीबो में अव्वल थे | उनके मुकाबले तब शहर में ऊँगली पर गिनी जाने वाली शख्सियत थीं | उनके घर के सामने गेंदा का घर था, गेंदा की माँ को गठिया था | सुबह मस्जिद से नमाज से फारिक होने के बाद सडक से २ फुट नीचे गड्डे में उतर चुके सरकारी नल से गेंदा की माँ को पानी उपलब्ध करना प्रोफेसर साहब बिला नागा करते थे | ऐसी रवायत में पले हम लोग कैसे झगड़ सकते हैं ? कमोबेश सारे भोपाल की यही तहजीब है |
जिनके जेहन में साम्प्रदायिक खौफ है, उनकी रवायत [संस्कार ] में खोट है | डरते हम दोनों तब भी बेअदबी से थे, और अब भी बेअदबी से डरते हैं | हम तभी गली के हर बुजुर्ग से डरते थे,और आज भी उनसे गुस्ताखी करने में डरते हैं |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।