नई दिल्ली। दो बड़े फैसले भारतीय बैंकों ने लिए है। इन फैसलों का देश के आर्थिक स्वास्थ्य पर कितना असर होगा, यह समय बताएगा। एक फैसला कल से लागू हुआ और एक बैंकिंग व्यवस्था में परिवर्तन है, जिसकी मांग माल्या- मोदी के देश से नदारद होने के बाद जोरों पर थी। इन दोनों विषयों पर हर बैंक अपने हिसाब से निर्णय लेती थी अब ऐसा नहीं हो सकेगा। पहला निर्णय भारतीय रिजर्व बैंक के निर्णयानुसार RTGS और NEFT प्रणाली के जरिये पैसा भेजना कल एक जुलाई से सस्ता हो गया है। रिजर्व बैंक (Reserve Bank) ने इस तरह के धन प्रेषण पर बैंकों के ऊपर किसी भी तरह का शुल्क नहीं लगाने का फैसला किया है।
दूसरे फैसले से फंसे हुए कर्ज की समस्या पर लगाम लगती दिखती है। फंसे हुए कर्ज का चक्र मार्च 2018 में उच्चतम स्तर पर था। भारतीय रिजर्व बैंक की अथक मेहनत रंग लाई है, जो उसने फंसे हुए कर्ज को चिह्नित करने में की थी। RBI की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश ऐसी परिसंपत्ति के चिह्नित हो जाने के कारण सकल एनपीए अनुपात मार्च 2019 में गिरकर 9.3 प्रतिशत हो गया और मार्च 2020 तक इसके 9 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है। सरकारी बैंकों के सकल एनपीए अनुपात में भी गिरावट आ सकती है और यह मार्च 2019 के 12.6 प्रतिशत से गिरकर मार्च 2020 तक 12 प्रतिशत हो सकता है। वहीं निजी क्षेत्र के बैंकों का सकल एनपीए अनुपात 3.7 प्रतिशत से सुधरकर 3.2 प्रतिशत हो सकता है।
वैसे सभी बैंकों का प्रोविजन कवरेज रेशियो (पीसीआर) तेजी से बढ़ता हुआ मार्च 2019 में 60.6 प्रतिशत हो गया। इससे पहले सितंबर 2018 में यह 52.4 प्रतिशत था। जबकि मार्च 2018 में 48.3 प्रतिशत था। इससे बैंकिंग क्षेत्र में मजबूती आई है। रिकग्निशन, रिजॉल्युशन और रिकवरी के तीन 'आर' में से पहला आर हकीकत में बदल चुका है। अब इसका अधिक कठिनाई भरा हिस्सा बकाया है। अच्छी खबर यह है कि ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) एक मजबूत नियमन है, हालांकि कुछ मामलों में निस्तारण अदालती चक्कर में उलझा हुआ है। आरबीआई के जून 2019 में जारी तनावग्रस्त परिसंपत्ति से संबंधित संशोधित खाके के अनुसार बैंकों के लिए ऋणशोधन के आवेदन में देरी करने पर उनका नुकसान होना है। दिलचस्प बात है कि केंद्रीय बैंक ने व्यवस्थित जोखिम संबंधी सर्वेक्षण में पाया कि प्रतिक्रिया देने वालों में से आधे यह मानते हैं कि अगले एक वर्ष में भारतीय बैंकिंग क्षेत्र की संभावनाओं में कुछ सुधार होगा। इसमें आईबीसी की प्रक्रिया के तहत आई स्थिरीकरण का भी योगदान रहेगा। रिपोर्ट के मुताबिक इससे घरेलू वित्तीय क्षेत्र में विश्वास भी बहाल होगा।
बैंकों के लिए यह समझना जरूरी है कि वे अब पुराने तौर तरीकों से काम नहीं करते रह सकते। वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट यह भी कहती है कि अगर सरकार ने अतिरिक्त पूंजी नहीं दी तो अगले वर्ष तक कम से कम पांच बैंक न्यूनतम पूंजी पर्याप्तता के नियामकीय स्तर से नीचे रहेंगे। बैंकों का पुनर्पूंजीकरण एक अस्थायी उपाय भर है जबकि स्थायी निदान होगा| गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की दशा गंभीर है । इस क्षेत्र का सकल एनपीए अनुपात 2017-18 के 5.8 प्रतिशत से बढ़कर 2018-19 में 6.6 प्रतिशत हो गया। जबकि पूंजी पर्याप्तता अनुपात मार्च 2018 के 22.8 प्रतिशत से घटकर 19.3 प्रतिशत रह गया। सबसे बढ़कर कुछ गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां देनदारी चूक रही हैं या अपने भुगतान दायित्वों का निबाह नहीं कर पा रही हैं। परंतु केवल ये इतना पर्याप्त नहींहै ,नियामक को भविष्य में संक्रमण के जोखिमों से बचने के लिए अग्रगामी कदमों पर विचार करने की आवश्यकता है।नई व्यवस्था नया रंग और नये परिणाम देश देखेगा |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।