नई दिल्ली। देश की सरकार और राज्यों की सरकार समय समय पर “जनप्रतिनिधियों से कैसे व्यवहार करें” के निर्देश जारी करती रहती हैं | इसके विपरीत ऐसा कोई हिदायतनामा कहीं देखने को नहीं मिलता कि जन प्रतिनिधि कैसे व्यवहार करें ? ऐसा ही कुछ मध्यप्रदेश विधानसभा में घटा, तब मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति को आसंदी से जनप्रतिनिधियों को बताना पड़ा कि संसदीय मर्यादा की सीमा कहाँ तक है | श्री प्रजापति ही नहीं पूरा समाज जनप्रतिनिधियो के सदन और सदन के बाहर के व्यवहार से चिंतित है | सुधार कब होगा, राम जाने | यह चिंता जिस कारण उद्भूत हुई, उसके नायक भोपाल के एक पूर्व विधायक सुरेन्द्र नाथ सिंह गिरफ्तारी के बाद जमानत पर हैं | इंदौर के बल्लेबाज विधायक जमानत पर हैं | उत्तराखंड में बंदूक लेकर नाचते विधायक निलम्बित कर दिए गये हैं | एक बात खास है इन सबका सम्बन्ध अनुशासन की दुहाई देने वाले राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी से है | प्रश्न यह है की ये जनप्रतिनिधि इतने अशालीन क्यों हो जाते हैं या हो रहे हैं |
सुरेन्द्र नाथ सिंह बिजली के भारी बिलों के खिलाफ और गुमटी व्यापरियों को न हटाये जाने को लेकर आन्दोलन कर रहे है | कल भाषण के दौरान खून की नदियां बहाने की धमकी देने वाले बीजेपी नेता और भोपाल के पूर्व विधायक सुरेन्द्र नाथ सिंह ने कहा है कि वो अपने बयान के लिए माफ़ी नहीं मांगेंगे. पार्टी चाहे तो उन्हें निकाल दे| सिंह ने कहा उन्होंने कोई अनुशासनहीनता नहीं की है| सुरेंद्र नाथ सिंह ने कहा-कई बार धरना देने के बाद भी सरकार ने हमारी एक नहीं सुनी| इसलिए इस तरह की बयानबाज़ी करना पड़ी| कहीं सुनवाई ना होने के बाद ही हमने प्रदर्शन किया| अब उस बयान के लिए पार्टी भले ही कोई भी कार्रवाई करे, चाहे तो निष्कासित कर दे, लेकिन मैं माफ़ी नहीं मांगूंगा| जनप्रतिनिधि के साथ भी समस्या है, कोई उसकी न सुने तो क्या करे ? सुरेन्द्र नाथ सिंह और आकाश विजयवर्गीय ने इससे पहले के सब हथियार आजमा लिए थे | भाजपा और खास क्र मध्यप्रदेश भाजपा में “निवेदन आवेदन और दनादन” की संस्कृति के प्रचारक सिरमौर बने बैठे हैं |
इस सब के बावजूद यह व्यवहार कही से भी उचित नहीं है | इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप कांग्रेस विधायकों द्वरा प्रश्नकाल के दौरान की गई नारेबाजी और हंगामे को भी विधानसभा अध्यक्ष ने अनुचित ठहराया है | अब सवाल जनप्रतिनिधि से व्यवहार और जनप्रतिनिधि का व्यवहार कैसा हो उठता है | आम तौर पर जनप्रतिनिधियों का व्यवहार चुनाव से पूर्व कुछ और चुनाव जीतने के बाद कुछ और होता है | चुनाव के टिकट के लिए बड़े नेता की चिरौरी करने वाले, चुनाव के दौरान सबसे अधिक विनम्र दिखने वाले, जीतने के बाद आम मतदाता को भूल जाते हैं | सार्वजनिक रूप से दुर्व्यवहार को अपना विशेषाधिकार मान कर किसी से भी बदतमीजी आम बात है | इन्ही बातों का विस्तार विधानसभा में घटा दृश्य है | अपने नेता के समर्थन में प्रदर्शन और रोष ठीक है, पर इसके लिए किसी और बड़े नेता को गुंडा बता कर नारेबाजी करना शालीनता नहीं है | विधानसभा अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने जो कहा उसका सिर्फ यही अर्थ निकलता है | वस्तुत: जन प्रतिनिधि का अहम उसे डुबा डालता है, भोपाल की दो विधानसभा सीटे भाजपा के हाथ से इसी कारण तो फिसली हैं | जनप्रतिनिधियों का व्यवहार आम जनता और शासकीय कर्मचारियों के साथ कैसा हो ? इस पर राजनीतिक दलों को विचार करना चाहिए, एक आदर्श संहिता तैयार करना चाहिए वरन यह रोज होगा | फिर चाहे मुख्यमंत्री नसीहत दें या प्रधानमंत्री बौद्धिक |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।