नई दिल्ली। HEART ATTACK के मरीजों को जल्द आपातकालीन चिकित्सा सुविधा (EMERGENCY MEDICAL SERVICE) उपलब्ध कराने के लिए भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) व एम्स द्वारा शुरू की गई मिशन दिल्ली का असर दिखने लगा है। हेल्पलाइन नंबर (14430) पर हार्ट अटैक की सूचना मिलने पर एम्स के प्रशिक्षित पैरामेडिकल कर्मचारी 15 मरीजों की जान बचा चुके हैं।
क्या है मिशन दिल्ली | WHAT IS MISSION DELHI
मई में आइसीएमआर के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव व एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने मिशन दिल्ली के तहत फर्स्ट रिस्पांडर बाइक की शुरुआत की थी। इसके तहत चार बाइकों पर एम्स द्वारा प्रशिक्षित पैरामेडिकल कर्मचारी तैनात किए गए हैं, जो एम्स परिसर के 3 किलोमीटर के दायरे में सक्रिय रहते हैं। इस परियोजना में 12 नर्सिंग कर्मचारी व चार डॉक्टरों को शामिल किया गया है। इसके लिए एम्स में बकायदा कंट्रोल रूम बनाया गया है। लोगों को इसकी जानकारी देने के लिए इलाके में पर्चे बंटवाए गए हैं। इसके अलावा आरडब्ल्यूए के साथ बैठकें भी की गई हैं।
हृदयाघात के बाद शुरुआती 30 मिनट कीमती होते हैं
विशेषज्ञ डॉक्टर कहते हैं कि हृदयाघात होने पर 30 मिनट के भीतर क्लॉट बस्टर इंजेक्शन देना जरूरी होता है। यह इंजेक्शन लगने के बाद 70 फीसद ब्लॉकेज दूर हो जाता है लेकिन ज्यादातर मरीज इतने कम समय में अस्पताल नहीं पहुंच पाते। 30 से 90 मिनट के अंदर अस्पताल पहुंचने पर प्राइमरी एंजियोप्लास्टी कर मरीज की जिंदगी बचाई जा सकती है। इससे अधिक देर होने पर मरीज को बचा पाना मुश्किल हो जाता है।
विशेषज्ञ डॉक्टर कहते हैं कि हृदयाघात होने पर 30 मिनट के भीतर क्लॉट बस्टर इंजेक्शन (CLOT BUSTER INJECTION) देना जरूरी होता है। यह इंजेक्शन लगने के बाद 70 फीसद ब्लॉकेज दूर हो जाता है
फर्स्ट रिस्पांडर बाइक | FIRST RESPONDER BIKE
आइसीएमआर ने शोध परियोजना के रूप में यह पहल शुरू की है। डॉक्टर कहते हैं कि अब लोगों का कॉल आने लगे हैं। सीने में दर्द व हार्ट अटैक के लक्षण महसूस होने पर लोग हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करते हैं। ड्यूटी पर मौजूद नर्स द्वारा कॉल फर्स्ट रिस्पांडर बाइक को स्थानांतरित कर दिया जाता है। 10 मिनट में कर्मचारी मौके पर पहुंच जाते हैं और तुरंत ईसीजी कर रिपोर्ट कंट्रोल रूम में भेजते हैं। जहां मौजूद डॉक्टर ईसीजी टीम को इलाज के लिए जरूरी निर्देश देता है। जरूरत पड़ने पर मरीज के घर ही उसे दिल की धमनियों से ब्लॉकेज दूर करने के लिए इंजेक्शन लगाया जाता है।
मरीज की हालत स्थिर होने पर उसे नजदीकी अस्पताल में एंबुलेंस से पहुंचाया जाता है। ताकि उसका आगे का इलाज हो सके। यह ट्रायल सफल होने पर आइसीएमआर इस मॉडल को देश भर में लागू करने की केंद्र सरकार से सिफारिश कर सकता है।