1857 के स्वातन्त्र्य समर में लाखों योद्धाओं ने बलिदान दिया है। उसमें बहुत कम क्रान्तिकारियों का इतिहास हमने पढ़ा है। भारत के हर प्रान्त के जाति समाज राज्यों और रियासतों ने उस युद्ध में अंग्रेजों को नाको चने चबवा दिए थे। अपना बलिदान देकर भारत राष्ट्र की स्वतन्त्रता की नींव रखने वाले अनगिनत योद्धाओं में एक थे गढ़ा मण्डला के राजा शंकर शाह व उनके पुत्र कुँवर रघुनाथ शाह।
राज गोंड वंश के इन पिता-पुत्र ने गोरिल्ला युद्ध से अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। किन्तु अंग्रेजों के विरुद्ध एक बड़े आक्रमण की योजना बनाते हुए घर के भेदियों ने अंग्रेजों को इसकी सूचना दे दी और राजा और कुँवर को धोखे से गिरफ्तार कर लिया। क्रूर अंग्रेजों ने उन पर बगावत का मुकदमा दर्ज कर तोप के मुँह से बाँधकर उड़ाने की सजा-ए-मौत सुनाई गई।
दोनों को सार्वजनिक स्थान पर उनके ही राज्य की तोपों में बाँधकर उड़ा दिया। वह तारीख 18 सितम्बर 1858 थी। उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े हो गए। जनता की चीखें निकल गई। रानी माँ ने अपनें पति और पुत्र के शरीर के टुकड़ों को इकठ्ठा कर मण्डला चली गई। क्योंकि अन्तिम संस्कार की अनुमति भी अंग्रेजों ने नहीं दी थी।
राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बलिदान से गढ़ा मण्डला क्षेत्र में क्रान्ति की ऐसी ज्वाला जगी कि क्रान्तिकारी सेना ने अनेक अंग्रेज अधिकारियों को मार दिया। 1947 देश स्वतन्त्र होने तक क्रान्ति की ज्वाला जबलपुर क्षेत्र में जलती रही। उस क्षेत्र में लोग आज भी राजा शंकर शाह और कुँवर रघुनाथ शाह के बलिदानों के गीत गाते हैं।