भोपाल। मप्र में पिछले समय में शिक्षकों की भर्ती में प्रांतीय स्तर से चयन सूची के तहत चयनित अभ्यर्थियों की नियुक्ति आदेश जारी किये गये। इस प्रक्रिया में पदाभिलाषि सैकड़ों किमी दूर पदस्थ किये गये थे। मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के प्रांतीय उपाध्यक्ष कन्हैयालाल लक्षकार ने कहा है कि एक जमाना था जब शिक्षकों की भर्ती स्थानीय स्तर पर अधिकतम जिले के अंदर तक सीमित रहती थी।
कतिपय कारणों से यदि शिक्षक अन्य जिले या संभाग में पदस्थ होता था तो उसे राजधानी की दौड़ लगानी पड़ती थी। शिक्षकों की इस पीड़ा को प्रदेश के भूपू शिक्षामंत्री माननीय श्री महेन्द्रसिंह कालूखेड़ा ने एतिहासिक अनुकरणीय व साहसिक फैसला लेकर नीति बनाई कि जो शिक्षक अपने गृह जिले में स्थानान्तरण चाहते है उनका एकमुश्त स्वेच्छिक तबादला कर दिया जावे। इसकी काफी सराहना की गई थी व आज भी इस मामले में शिक्षकों के बीच सम्मान के साथ माननीय श्री कालूखेड़ा को स्मरण किया जाता है।
पूरे प्रदेश में तात्कालिक समय में हजारों शिक्षकों को इसका लाभ मिला था। पूर्व मंत्री महोदय का मानना था कि शिक्षकों की पदस्थापना गृह जिले में ही होना चाहिए। मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ प्रदेश की कमलनाथ सरकार से निवेदन करता है कि एक बार फिर प्रदेश में श्रध्देय भूपू शिक्षामंत्री माननीय श्री महेन्द्रसिंह जी कालूखेड़ा की नीति का अनुकरण करते हुए एक साथ स्वेच्छिक गृह जिले में शिक्षकों के स्थानान्तरण कर दिये जावे।
पिछली भर्ती में संविदा शिक्षकों को सैकड़ों किमी दूर नियुक्ति दी गई है। ऐसे शिक्षक अपने गृह जिले में परिवार के निकट पहुँच कर कुछ पारिवारिक व सामाजिक दायित्वों का निर्वहन कर सकेंगे। इसके लिए सरकार एक नियत अवधि में विशेष अभियान चलाकर प्रदेश के सभी शिक्षकों को अपने-अपने गृह जिलों में जाने का एक स्वर्णिम अवसर प्रदान करें। बगैर ख़र्च के स्वैच्छिक तबादलों से "हींग लगे न फिटकरी और रंग चौखा आए" वाली कहावत चरितार्थ हो जाएगी।