श्रीमान, मैं आपके माध्यम से बताना चाहता हूं कि मध्यप्रदेश सिविल सर्विसेज रूल्स 1961 की धारा 6 (6) के अंतर्गत नियम है कि शासकीय सेवक के 26 जनवरी 2001 के बाद तीसरी संतान होने पर वह शासकीय सेवा से अयोग्य हो जाता है। यह नियम जनसंख्या नियंत्रण के माध्यम के रूप में लागू किया गया था परंतु इस नियम का पालन सख्ती से नहीं हो पाया।
प्रारम्भ में कर्मचारियों ने डर से इस नियम का पालन किया पर बाद मे उन्होंने बेटे की चाह में इसकी धज्जियां उड़ा दीं जिसका खामियाजा उनके परिवार में पहले से हुई दो बच्चियों को उठाना पड़ रहा है। शासन भी इस मामले में चादर ओढ़ कर सो रहा है क्योंकि इस तरह के प्रकरण लगभग सभी विभागों में हैं। पर ऐसे कर्मचारियों की संख्या शिक्षा विभाग में सबसे ज्यादा है क्यों कि शिक्षा विभाग में कर्मचारी भी सबसे ज्यादा है। इसमे भी सबसे खास बात यह है कि तीसरे बच्चे के जन्म के समय महिला कर्मचारियों ने कोई प्रसूति अवकाश स्वीकृत नहीं कराया बल्कि मेडिकल अवकाश पर रह कर बच्चे को जन्म दिया ताकि शासन को इसका पता न चले। इसी तरह से पुरुष कर्मचारियों ने भी पितृत्व अवकाश नहीं लिया।
इसमे से कई कर्मचारी ऐसे है जिनमें पति और पत्नी दोनों शासकीय सेवा में हैं। दो बच्चों के बाद जन्म लेने वाले बच्चे को समग्र पोर्टल पर दर्ज कर कर उसकी चाइल्ड आईडी भी जनरेट नहीं कराई गई, चूंकि प्राइवेट स्कूलों में मैपिंग करना भी अनिवार्य नही है इसलिए इन बच्चों का कोई रिकॉर्ड पोर्टल पर नहीं है। मेरा शासन से एवं शिवपुरी की कलेक्टर महोदय से निवेदन है शिवपुरी के समस्त शासकीय कर्मचारियों की जांच कराई जाए कि उनमें से कितने कर्मचारियों ने 2001 के बाद तीसरे बच्चे को जन्म दिया है और दोषी कर्मचारियों को बर्खास्त करने की कार्यवाही की जाए।
इसके लिए शिवपुरी के समस्त विद्यालयों का रिकॉर्ड चेक किया जाए, साथ ही अस्पतालों और जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण के दस्तावेजों की जांच की जावे ताकि ऐसे कर्मचारियों का पता चल सके।और अगर शासन ऐसा करने में असमर्थ है तो शासन को ये नियम समाप्त कर देना चाहिए ताकि और लोग भी इससे बच सकें।
एक जागरुक नागरिक