जबलपुर। ज्यादातर लोग सुभद्रा कुमारी चौहान को सिर्फ एक कविता के कारण जानते हैं 'बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी' लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि एक महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थीं। वो भारत की पहली महिला महिला सत्याग्रही थीं जिन्होंने महात्मा गांधी के साथ सत्याग्रह किया। वो कई बार जेल गईं और आजादी के बाद विधायक भी चुनी गईं। आइए आज इलाहाबाद की बेटी और जबलपुर की बहू सुभद्रा कुमारी चौहान की कहानी पढ़ते हैं।
अब भी शान से खड़ा है सुभद्रा कुमारी का घर
जबलपुर में जन्म के बाद 1919 में उनका विवाह खंडवा के लक्ष्मण सिंह से हुआ था और शादी के बाद ये परिवार जबलपुर में बस गया था। जबलपुर के राइट टाउन में सुभद्रा कुमारी चौहान का घर था, अब इस घर में उनकी तीसरी पीढ़ी रहती है अभी भी उस घर के कुछ हिस्से बाकी हैं। जहां कभी देश की एक महान कवियत्री कालजयी रचनाएं लिखा करती थी। उन दिनों जबलपुर एक बड़ा गांव हुआ करता था और महिलाओं को ऐसी आजादी नहीं थी कि वे खुलकर अपना जीवन जी सकें।
जेल की दीवार पर नाम लिखा है
सुभद्रा जबलपुर की सड़कों पर साइकिल से आती जाती थीं। आंदोलनकारियों की बैठक लेना, आंदोलनों में भाग लेना, स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर उनका जुनून इस कदर था कि 1921 में वे जब मात्र 17 साल की थी, तब गांधीजी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेते हुए दो बार जबलपुर जेल में बंद रहीं। जबलपुर जेल में उनके नाम से आज भी एक बैरक है।
बच्चों को छोड़कर सत्याग्रह में चली गईं
1922 में जब गांधीजी ने सत्याग्रह की घोषणा की तो सुभद्रा पहली महिला सत्याग्रही बनीं, सुभद्रा के चार बच्चे थे, आंदोलनों में जाती थीं तो दूसरे क्रांतिकारी उनके बच्चों का लालन-पालन करते थे और आंदोलनों की वजह से अपने बच्चों को जितना समय देना चाहिए था, वह नहीं दे पाती थी। इसलिए उनकी कविताओं में बच्चों के प्रति प्रेम अलग दिखता है।
बेटे का एक्सीडेंट हुआ तो प्राण त्याग दिए
स्वतंत्रता के बाद सुभद्रा कुमारी चौहान जबलपुर से विधायक चुनी गई थीं और उन दिनों मध्य भारत की राजधानी नागपुर हुआ करती थी, यहीं से लौटते हुए सिवनी के पास एक एक्सीडेंट हुआ, जिसमें सुभद्रा के पुत्र को गंभीर चोट लगी थी, इन चोटों को देख कर सुभद्रा कुमारी सहन नहीं कर पाईं और यहीं पर हार्ट अटैक से उनकी मृत्यु हो गई। आज भी नागपुर रोड पर उनकी समाधि बनी हुई है।