अब लगभग यह तय हो चुका है कि 134 साल पुरानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अगला अध्यक्ष मौजूदा नेहरू गांधी परिवार से नही होगा।तथ्य यह है कि कांग्रेस में अब तक कुल 19 अध्यक्ष हुए है जिनमे से 14 परिवार के बाहर से आये है जाहिर है जो लोग परिवार से बाहर कांग्रेस का भविष्य नही देख पा रहे है उन्हें इस तथ्य को मान्यता देनी ही होगी की 134 साल पुरानी इस अखिल भारतीय पार्टी के उत्थान और पतन में सिर्फ नेहरू गांधी खानदान ही नही है और न ही यह हमेशा से केवल चुनाव लड़ने का इंस्ट्रूमेंट्स या प्लेटफार्म भर है।
कांग्रेस का इतिहास आजादी के बाद नेहरू ,इंदिरा के एक छत्र राज में भी आचार्य कृपलानी, पट्टाभि सीतारमैय्या, पुरूषोंत्तम दास टण्डन, निजिलिंगप्पा, जगजीवनराम, शंकर दयाल शर्मा,कमलापति त्रिपाठी, जैसे लोगो से अलंकृत रहा है। असल मे इंदिरा गांधी की सत्ता के शीर्ष पर भागीदारी के साथ ही कांग्रेस का विचार पक्ष कमजोर होता चला गया संजय गांधी ने इसे बिल्कुल जमीदोज करके रख दिया और 2019 तक आते आते विचार के ऊपर पर्सनेल्टी कल्ट ने अपनी अभेद इमारत खड़ी कर ली, यही इस पार्टी की आत्मघाती पूंजी भी साबित हुई।बेशक अगर आज मोदी हार जाते और कांग्रेस को 200 सीट मिल जाती तो परिवार से बाहर का यह प्रश्न ही उपस्थित नही होता। राहुल सम्भव है प्रधानमंत्री होते। यानि आज जो संकट कांग्रेस के सामने खड़ा है वह सिर्फ इसलिये है क्योंकि जिस परिवार और पार्टी को सत्ता की सीढ़ी समझा जाता रहा है वह टूट गई है।
जो सिर्फ सत्ता के लिये परिवार भक्त है वे इसे पैबंद लगाकर जोड़ने की कोशिशें कर रहे है पर राहुल गांधी मान नही रहे क्योंकि वह समझ चुके है कि इस पैदल फ़ौज के भरोसे फिलहाल भारत मे अकेले परिवार की पुण्याई को कैश नही कराया जा सकता है इसीलिए उन्होंने अपने चार पेज के त्यागपत्र में लिखा है कि कई जगह वे अकेले लड़ते रहे।असल सच्चाई यही है कि काँग्रेस में काम करने वाले आज अधिकांश चेहरे सिर्फ मूर्ति पूजकों के गिरोह है मोदी के अंधभक्तों को निशाना बनाने वाले शायद परिवार के इन सलमान खुर्शीद, गुलाम नवी,अहमद मियां, अधीर रंजन,आस्कर,बोरा,मिस्री, द्विवेदी, सिब्बल,सिंघवी,चिदम्बरम,जैसे भक्तों को भूल जाते है जिनकी कोटरी में परिवार पिछले 20 साल से घिरा हुआ है।
इनमें से एक भी चेहरा जनता के बीच लोकप्रिय नही है।इसलिये स्वाभाविक ही है कि परिवार से विलग होकर इन नेताओं के लिये लुटियंस की दुनिया लूट ही जाएगी।लेकिन सवाल यह है कि क्या राहुल के त्याग पत्र से काँग्रेस के संकट का समाधान हो जाएगा?तथ्य तो यह है कि राहुल और पूरा परिवार कांग्रेस को एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिए है जहां उसके अस्तित्व को मोदी अमित शाह सिंह- गर्जना कर ललकार रहे है।134 साल पुरानी पार्टी के समक्ष आज नीति ,नीयत औऱ नेतृत्व का संकट है।पर्सनेलटी कल्ट ने कांग्रेस को इतना कमजोर कर दिया है कि आज नए नेतृत्व का सवाल इस पार्टी को बुरी तरह से डरा देता है असल मे यह कांग्रेस विचार की हत्या का ही नतीजा है जो आलाकमान कल्चर से निर्मित हुआ।आज काँग्रेस के सामने क्या विकल्प है?सचिन पायलट,मिलिंद देवड़ा, जितिन प्रसाद,ज्योतिरादित्य सिंधिया, मुकुल वासनिक,या फिर बोरा,दिग्विजय,कैप्टिन, शिंदे,द्विवेदी जैसे लोग।
इन सबकी अपनी सीमाएं औऱ क्षमता है,औऱ सच्चाई यह है कि ये सब 10 जनपथ के कृपापात्र है दिग्विजय सिंह औऱ अमरिंदर सिंह को छोड़कर इनमे से एक भी शख्स न कांग्रेस विचार का जानकार है न संगठन की इन्हें समझ और न ही इनमें से किसी के पास जनसंघर्षों से हासिल की गई कोई पूंजी।आज कांग्रेस को आवश्यकता है एक ऐसे अध्यक्ष की जो लुटियन्स जोन से बाहर निकलकर गांव,तालुका,जिला स्तर पर जाकर पहले पार्टी के संगठन को खड़ा करे,जिसके पास ऊर्जा के साथ संगठन शिल्प भी हो जिसका मन चौपर नही चौपाल में रमता हो ,जो भारत की सामाजिकी को गहरे से समझता हो पार्टी को ऐसे अध्यक्ष की दरकार है जो 10 जनपथ की रईसी के आवरण से हटकर अगले 5 साल भारत की धरती पर गुजारे क्योंकि हकीकत यही है कि आज की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नाता भारत से पूरी तरह कट चुका है।इसलिये कांग्रेस का धर्म संकट इतना सरल नहीं है जितना दिख रहा है।अखिल भारतीय दल होने के नाते उसके अध्यक्ष को शक्तिशाली होना भी जरूरी है एक समय यह काम पी व्ही नरसिंहा राव ने कर दिखाया था।लेकिन राव आज कांग्रेस के इतिहास में सबसे बुरे आदमी के रूप में दर्ज है उनके पार्थिव देह को 24 अकबर रोड पर जगह तक नही दी गई।
आज इतिहास शायद फिर कुछ लिख रहा है 134 साल पुरानी एक पार्टी के सामने अस्तित्व के प्रश्न को इतिहास मोटे हरूफ में दीवार पर लिखने के लिये तैयार है।जिन्होंने 10 जनपथ के साये में सत्ता का वरण किया वे आज सबसे ज्यादा परेशान है खुश है तो महाराजा पटियाला जैसे शुद्ध कांग्रेसी जो सबसे पहले इस बात को मान चुके की राहुल गांधी अब उनके अध्यक्ष नही है औऱ लगे हाथ उन्होंने युवा जोश की बात कहकर अपनी पसंद भी जाहिर कर दी।असल मे आज भी कांग्रेस में परिवार के निर्णयों को लेकर दो वर्ग है एक अमरिंदर सिंह जैसे जो खुद के जनाधार से राजनीति में है और दूसरे सलमान खुर्शीद गुलाम नबी टाइप नेता जिनका अपना कोई आधार नही है।असली कांग्रेस जो थोड़ी बहुत पंजाब,केरल,कर्नाटका, मप्र राजस्थान में बची है उसका परिवार के साथ रिश्ता वे लोग तय करते है जो जमीन पर नही लुटियन्स में रहते है।जबकि असल कांग्रेस यही है।
जमीन से कटे कांग्रेस नेतृत्व के संकट को मप्र के इस उदाहरण से समझिये!मप्र में 15 साल बाद सरकार बनी इस दौरान बड़े बड़े कांग्रेसी भाजपाई हो गए या घर बैठ गए कुछ ही लोग है जो 15 साल काँग्रेस का झंडा थामे रहे । लेकिन सरकार बनी तोआदिवासी चेहरा बिसाहू लाल,6 बार के विधायक केपी सिंह,घनश्याम सिंह,एडल सिंह गुर्जर,जैसे कई विधायक मंत्री नही बनाये गए और जूनियर विधायको को सीधे कैबिनेट मंत्री बना दिया गया।
अगर आलाकमान नामक कोई व्यवस्था होती तो मप्र में पहले उन लोगो को मौका उपलब्ध कराती जो 15 साल बीजेपी के राज में भी कांग्रेसी झंडा उठाये रहे जनता के बीच से चुनाव जीतकर आते रहे।लेकिन यही बुनियादी कटाव आज कांग्रेस के लिये संकट बन गया है इसी कार्यशैली ने आसाम में हिमंता शर्मा,आंध्रप्रदेश में जगन मोहन,बंगाल में मोइना मित्रा,यूपी में रीता बहुगुणा, सतपाल महाराज जैसे नेताओं को बागी बना दिया।इसलिये आज की चुनोतियाँ नए अध्यक्ष को सत्ता के लिये नही पहले पार्टी को खड़ा करने की होगी।देश भर में कांग्रेस का कैडर है उसे पहले आत्मविश्वास के साथ खड़ा करना होगा लिहाजा अगले 5 साल मोदी को फिर चोर कहने की मूर्खता न करके कांग्रेस को स्थापित करने की प्राथमिकता पर काम होना चाहिये क्योंकि कांग्रेस के सामने वैचारिकी का भी संकट है उसके पास आज जनता को बताने के लिये कुछ भी नया नही है जो उसके अध्यक्ष ने 2019 में बताया उसे जनता ने खारिज कर दिया है और जम्हूरियत में जनता की स्वीकारोक्ति ही सर्वोपरि है।
कांग्रेस के भीतर के असली कांग्रेसी जल्द से जल्द नया मुखिया तलाश लें यह बेहतर होगा वरन अमित शाह तो जीतकर भी नये मुखिया ओर 2024 की संकल्पना पर काम शुरू कर चुके है वही 10 जनपथ औऱ सीडब्ल्यूसी में झूल रही है 134 साल पुरानी पार्टी।