शहीद भीमा नायक शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बड़वानी के कॅरियर काउंसलर और पीएच.डी. के शोध निदेशक डॉ. मधुसूदन चौबे ने बताया कि आप जिस विषय में पीएच.डी. करना चाहते हैं, उसमें सबसे पहले स्नातकोत्तर स्तर (POST GRADUATION) की शिक्षा पूर्ण करें। इसके उपरांत विश्वविद्यालय द्वारा ली जाने वाली DOCTORAL ENTRANCE TEST को क्लियर करें। यदि आपने UGC NET क्लियर कर लिया है तो आपको DET यानी डॉक्टर एंट्रेंस टेस्ट में सम्मिलित होने की आवश्यकता नहीं रहती है।
फिर छह माह का कोर्स वर्क विश्वविद्यालय मुख्यालय पर होता है, उसे ज्वाइन करें। कोर्स वर्क पूरा होने पर एक परीक्षा होती है, जिसमें उत्तीर्ण होना आवश्यक है। इसके उपरांत आर.डी.सी. होती है। इसमें शोध के प्रस्ताव पर इंटरव्यू होता है। प्रस्तावित शोध विषय आरडीसी में स्वीकृत हो जाने पर शोध प्रबंध तैयार करना होता है। शोध केन्द्र पर इस शोध प्रबंध का प्री प्रजेंटेशन होता है। वहां से प्राप्त सुझावों के आधार पर फाइनल शोध प्रबंध तैयार किया जाता है। इस शोध प्रबंध की लिखित एवं मौखिक परीक्षा होती है। इन सब पड़ावों से गुजरने के बाद पीएच.डी. की प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है।
पीएचडी करने में कितना खर्चा आता है
कार्यकर्ता प्रीति गुलवानिया ने बताया कि पीएच.डी. करने में खर्च कितना होगा, यह शोध के विषय और अवधि पर निर्भर करता है। सामान्यतः इसमें विश्वविद्यालय, शोध केन्द्र, केन्द्रीय पुस्तकालय आदि की फीस, टाइपिंग, फोटोग्राफी, बाइंडिंग आदि के खर्च आते हैं। इन सबमें पचास हजार रुपये से अधिक खर्च होने की संभावना रहती है।
पीएच.डी. करने से क्या लाभ होता है
डॉ. चौबे ने बताया कि पीएच.डी. की डिग्री के आधार पर मुख्य रूप से उच्च शिक्षा में सहायक प्राध्यापक, लायब्रेरियन, स्पोर्टस ऑफिसर आदि के रूप में कॅरियर बनाया जा सकता है। न्यूनतम दो वर्षों में और अधिकतम चार वर्षों में पीएच.डी. की जा सकती है। चार वर्ष बाद भी अवधि बढ़ाने के प्रावधान हैं।